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________________ १४४ सुदर्शनचरितम् ७. कुसीलपरिभासिए-कुत्रोल परिभाषा का अधिकार-कुशीलादि ५ प्रकार के पाश्वस्थ साधुओं का अधिकार । ८. विरिए-वीर्याधिकार-जीवों की तरतमता से वीर्य का वर्णन करता है। ९. धम्मोय-धर्माधिकार-धर्म और अधर्म के स्वरूप का वर्णन करता है। १०, अम्ग-अग्राधिकार--श्रत के अनपदों का वर्णन करता है। ११. मग्गे-मार्गाधिकार--मोक्ष और स्वर्ग के स्वरूप तथा कारण का वर्णन करता है। १२. समोवसरणं-समवसरणादिधिकार-२४ तीर्थंकरों के समवशरण का वर्णन करता है। १३. तिकालगंथहिदे-त्रिकाल ग्रन्थ का अधिकार-त्रिकाल गोचर अशेष परिग्रह के अशुभ रूप का वर्णन करता है। १४, आदा-आत्माधिकार-जीव के स्वरूप का वर्णन करता है। १५. तदित्यगाथा-तदित्थमायाधिकार-वाद के मार्ग का प्ररूपण करता है। १६. पुण्डरिका-पुण्डरीकाधिकार-मित्रों के स्वादि स्थानों में स्तम्या ___का वर्णन करता है। १७. किरियठाणेय-क्रियास्थानाधिकार-तेरह प्रकार की क्रियाओं के स्थानों का वर्णन करता है। १८. आहारय परिणामे-आहारक परिणाम का अधिकार, सर्व धान्यों के रस और वीर्य के विपाक को तथा शरीर में व्याप्त सात साधुओं के स्वरूप का वर्णन करता है। १९. पच्चकवाण-प्रत्याख्यान का अधिकार-सर्वद्रव्य के विषय से सम्बन्ध रखने वाली निवृत्तियों का वर्णन करता है। २०. अणगारगुणकित्ति-अनगारगुणकीर्तन का अधिकार-मुनियों के गुण का वर्णन करता है। २१. सुदा-श्रुताधिकार-श्रुत के फल का वर्णन करता है। २२. णालंदे नालंदाधिकार-ज्योतिषियों के पटल का वर्णन करता है । २३. सुद्दयडज्झागाणि तेवीसं-सूत्रकृत अध्ययन से २३ संख्या वाले हैं। द्वितीय अंग में श्रुतवर्णन के अधिकार के अन्वर्थ संज्ञा वाले हैं। चउवीस अरहंत-२४ तीर्थंकर--(१) वृषभदेवजी (२) अजितनाथजी (३) सम्भवनाथजी (४) अभिनन्दनजी (५) सुमतिनाथजी (६) पद्मप्रभूजी (७) सुपार्श्वनाथजी (८) चन्द्रप्रभजी (९) पुष्पदन्तजी (१०) शीतलनाथजी (११) श्रेयांसनाथजी (१२) वासुपूज्यजी (१३) विमलनाथजी (१४) अनन्त
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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