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पञ्चमोऽधिकारः अनन्तर पति-पत्नी पूर्व पुण्य के प्रभाव से इन्द्राणी और इन्द्र के तुल्य महान स्नेह से युक्त हो गए ॥ १ ॥
अपने पञ्चेन्द्रिय के विषय रूप विविध भोगों को भोगते हुए घर में परम आनन्द से युक्त हो भली भांति स्थित रहे ।। २ ।।
अनन्तर कालक्रम से अत्यधिक सुरतोत्सव होने पर मनोरमा ने अपने पुण्य से शुभ गर्भ धारण किया ।। ३ ॥
जिस प्रकार आकाश को कान्ति प्रमाओं के जीवन हेतु मेघ को जन्म देती है, उसी प्रकार नव मास बीत जाने पर उसने उत्तम पुत्र उत्पन्न किया ।।४।।
समस्त लक्षणों से सम्पूर्ण, जनप्रिय सुकान्ता नामक रत्नमयी भूमि सम्पत्ति की स्वान रत्नों के समह से जिस प्रकार युक्त होती है ॥ ५ ॥
इसी प्रकार वृषभदास नामक सेठ पुण्य के परिपाक से तारागण से युक्त चन्द्र के समान पुत्र, पौत्रादि मे युक्त श्रीमज्जिनेन्द्र चन्द्र के द्वारा कहे हुए धर्म-कर्म में तत्पर, श्रावकाचार से पवित्रात्मा तथा दान पूजा परायण होकर जब रह रहा था, तभी शानलोचन समाधिगुप्त नामक मुनीन्द्र बन के मध्य आए ।। ६-७-८ ।।
वे बहुत बड़े संघ के साथ थे, रत्नत्रय से सुशोभित थे, श्री जिनेन्द्र मत रूपी सागर की वृद्धि के लिए एकमात्र वृद्धिमान् चन्द्र थे ।। ९ ॥
वे तप में रत्नाकर थे, नित्य भव्य कमलों ( के विकास के लिए) सूर्य थे तथा जीवादि सप्त तत्त्व के अर्थ का समर्थन करने में विशारद थे ।। १० ।। ____धर्मोपदेश रूपी अमृत की वृष्टि से उनका परमोदय हुआ था । क्यानिधि वे भध्य चातकों के समूह को सदा संतृप्त करते थे।। ११ ।।
उनके आगमन मात्र से नन्दन वन के समान वह बन समस्त ऋतुओं के फल और पुष्पों के समूह से सुमनोहर हो गया ।। १२ ॥