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bsfधकारः
उसे सुनकर कपिला ब्राह्मणी ने वचन कहे कि हे देवि ! यह मनुष्य रूपवान् होने पर भी अत्यधिक नपुंसक है || ५७ ॥
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पुरुषत्व से हीन इसकी रूप सम्पत्ति से क्या लाभ है ? पृथ्वी पर निष्फल महाकोमल लता से क्या लाभ है ? ||५८ ॥
अनन्तर मार्ग से भिन्न स्थान पर रथारूढ रानी ने सुपुत्र तथा रूप, लावण्य से मण्डित परम उदय वाली मनोरमा को देखकर कहा यह सुपुत्रवती गुणभूषणा स्त्री किसकी है? यह कल्पलता के समान सफल, कोमल और सुख देने वाली है ।। ५९-६० ।।
उसे सुनकर किसी बुद्धिमती दासी ने उससे कहा ! अहो देवि, सुपुण्यात्मा राजसेठ सुदर्शन है ॥ ६१ ॥
यह भव्य गुणों का समुद्र और सज्जनों को आनन्द देने वाला है । उसकी यह कुलदीपिका दिव्य स्त्री है ॥ ६२ ॥
अभया विश्वास के कारण दासी के उस मनोहर वाक्य को सुनकर वहीं हँसकर कपिला से बोली ॥ ६३ ॥
मैं तो यह मानती हूँ कि उस महा बुद्धिमात् के द्वारा है ब्राह्मणी ! तुम ठगी गई । पुण्यवान् के लक्षणों से युक्त वह क्या उस प्रकार का हो सकता है ? ।। ६४ ।।
जिसका पुत्र मैंने समस्त लक्षणों से मण्डित देखा है । अतः हे बाह्मणी ! लोक में सचमुच विपरीत बुद्धि वाली हो ।। ६५ ।।
तुम
हँसकर कपिला ने अपने पुराने किए हुए आचरण के विषय में राजपरनी से पुन: कहा । हे देवि ! तुम मेरे वचनों को सुनो ।। ६६ ।।
यद्यपि तुम सौभाग्य से युक्त, सुरूपा और चातुर्य से युक्त हो तथापि में मानती हूँ कि इसका अनुभव किए बिना पृथ्वी पर यह सफल नहीं हैं ॥ ६७ ॥
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अभयतो नामक पाप निर्भय वह राजपत्नी बोली । यदि इसका सेवन नहीं करती हैं तो सर्वथा मैं मर जाऊँगी ॥ ६८ ॥
कष्ट है, दोनों किनारे जिसके टूट गए हैं, ऐसी नदी के समान कामाग्नि से पीड़ित स्त्रियाँ पृथ्वी पर क्या साहस नहीं करती हैं ? ॥ ६९ ॥
वह रानी इस प्रकार प्रतिज्ञा कर अनन्तर वन में क्रीड़ा कर अपने घर आकर काम से पीड़ित होकर पलङ्ग पर पड़ गई ॥ ७० ॥