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कामाग्नि से प्रज्वलित होकर जिस किसी प्रकार गाढ़ प्रलाप करने लगी | नींद और भोजन को जिन्होंने छोड़ दिया है, ऐसे कामियों को चेतना कहाँ है ? ॥ ७१ ॥
कामबाणों से व्याप्त उसे उस प्रकार देखकर पण्डिता नामक धाय ने कहा कि हे पुत्री ! तुम्हें क्या हुआ ? कहो ॥ ७२ ॥
रानी ने चित्त में स्थित अपनी बात को वाथ से कहा । यदि में सुदर्शन के साथ रमण करती हूँ तो मेरा जीवन शेष बचेगा ॥ ७३ ॥
लज्जादिक का परित्याग कर कामातुरा रानी ने समस्त पापप्रद वाक्य कहे । कामियों को विवेक कहाँ ? ।। ७४ ।।
उसे सुनकर पापभीर पण्डिता धाप अपने दोनों कान बन्द कर दोनों हाथों से अपना सिर धुनती हुई बोली ॥ ७५ ॥
हे देवि सुनो, मैं कहती हूँ कि धर्म, यश और सुख तब तक हैं, जब तक संसार का हितकारी शील रूपी रत्न नित्य है ॥ ७६ ॥
झील से मण्डित स्त्रियां विशेष रूप से शोभित होती हैं । अन्यथा रूप आदि से युक्त होने पर भी वे विष की लतायें हैं ॥ ७७ ॥
कामाकुल पापी स्त्रियाँ कार्याकार्य कुछ भी नहीं देखती हैं, जिस प्रकार पाप से दुःखी अभिप्राय वाला अन्धा कार्याकार्य को नहीं देखता है || ७८ ॥
कार्य को अपनी इच्छा से करने के लिए स्त्रियों विरुद्ध हो जाती हैं, जिस प्रकार कुबड़े पर आसक्त मन वाली अमृत महादेवी विरुद्ध हो गई थी ॥ ७९ ॥
माता सहित पति को मारकर वह नरक गई। वे पाप के परिणाम कैसे उत्पन्न हुए ? नीति है - पाप के फल से कुबुद्धि होती है ॥ ८० ॥ सुखी, दुःखी, कुरूपी, निर्धन और धनवान्, जिस बर को पिता ने दिया हैं, कुलस्त्रियों को उसी का सेवन करना चाहिए ।। ८१ ।।
तुम्हारा पति राजा है रूपादि गुण के समूह से मान्य है, पाप को कारण स्वरूप उसकी रचना क्यों करती हो ? ८२ ॥
हे भद्रे ! तुमने यह निन्दित कर्म ठीक से नहीं सोचा । अतः अपने कुल की रक्षा के लिए तुम अपने चित्त को वश में करो ॥ ८३ ॥
इसी प्रकार हे पुत्री ! तुम सुशीला, मार रूप सीता, चन्दना तथा द्रोपदी प्रमुख स्त्रियों का स्मरण करो ॥ ८४ ॥