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सप्तमोऽधिकारः
१२७ शोल दुर्गति का नाश करने वाला है, शुभकर है, शील कुल का 'उद्योतक है, शील संसार रूपी सुख और प्रमोद का जनक है, लक्ष्मी और यश का कारण है, पील अपने नत की रक्षा करने वाला, गुणकर और संसार से पार लगाने वाला है। श्री जिनभाषित शोल पवित्रतर है। हे भव्यों! लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए उस शील का सेवन करो ।। १४५ ।।
इस प्रकार पञ्चनमस्कारमन्त्र माहात्म्पप्रदर्शक सुदर्शनपरित में मुमुक्षु श्री विद्यामन्दिविरचित अभयाकृत उपसर्गनिवारण-शीलतप्रभाव व्यावर्णन नाम
का सातर्षा अधिकार समाप्त हुआ।