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षष्ठोऽधिकारः
नीली, प्रभावती तथा अनन्तमती प्रमुख कन्याओं का स्मरण करो, जो अपने शील के प्रभाव से मनुष्य और देवों आदि के द्वारा पूजित हुईं ॥ ८५ ॥। परस्त्री, परपुरुष तथा द्रव्य जो नराधम चाहते हैं, वे अपने पाप से दुर्गति में जाते हैं || ८६ ॥
परस्त्रों से विमुख सुदर्शन भी पवित्र आत्मा है, श्रावकाचार से सम्पन्न है और जिनेन्द्रवचनों में रत है ॥ ८७ ॥
जो निर्मोही स्वस्त्री का भी अल्प सेवन करता है। वह बुद्धिमान् भव्य परस्त्री स्पर्श कैसे करेगा ? ८८ ॥
कुलस्त्रियों को भी अपने पति को छोड़कर निश्चित रूप से परपुरुष में बुद्धि नहीं लगानी चाहिए ।। ८९ ।।
इत्यादिक पण्डिता के सुखप्रद शुभ वाक्य उस रानी के मन में कष्ट रूप हुए, जिस प्रकार कि ज्वर युक्त व्यक्ति को घी का सेवन कष्ट रूप होता है ॥ ९० ॥
कोप कर रानी बोली कि में इस समय सब कुछ जानती हैं, किन्तु उसके बिना शीघ्र ही मेरे प्राण चले जायेंगे ॥ ९१५ परोपदेश में समस्त व्यक्ति सदैव कुशल होते हैं । प्रकार के बहुत से उपायों को कहने में समर्थ हूँ ॥ ९२ ॥
पृथ्वी पर मैं इस
जिसके सुनने मात्र से मेरा चित्त भिद जाय । अतः उसके साथ यदि सम्बन्ध हो जाय तो मुझे सर्वथा सुख हो || ९३ ॥
मेरा पति पृथ्वी पर कामदेव के तुल्य है, गुणवान् भी है, फिर भी मेरी मनोवृत्ति उसी में ही प्रवृत्त होती है ॥ ९४ ॥
सखी कपिला के साथ उद्यान में जाते हुए हे माता ! मैंने प्रतिज्ञा की है कि ज्ञानी सुदर्शन के साथ, यदि मैं यहाँ रति क्रीड़ा नहीं करती हूँ तो मर जाऊँगी। अतः हे प्राण-वल्लभे ! मन में भ्रान्ति तजकर, तुम बिना किसी प्रकार विकल्प किए हुए ऐसा कार्य करो जिससे मेरा इष्ट कार्य हो जाय । अधिक कहने से क्या ? ।। ९५-९६-९७ ॥
इस प्रकार के आग्रह को सुनकर पण्डिता ने तब उसके कहे हुए के विषय में मन में सोचा, हाय स्त्री का दुराग्रह कष्टकारी है ।। ९८ ।।
जिस प्रकार श्मसान में मक्खियों से व्याप्त गन्दगी पर राक्षस, नीम पर कौआ, मत्स्य पर बगुला, मलभक्षण पर शुकर, दुष्ट स्वभाव पर दुष्ट, परद्रश्य पर तस्कर प्रीति को नहीं छोड़ता है, उसी प्रकार बुरी स्त्री दुराग्रह को नहीं छोड़ती है ॥ ९९-१०० ॥