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पञ्चमोऽधिकारः
एकपाद नामक एक ब्राह्मण पुत्र एक बार परिव्राजक के वेष में गङ्गा स्नान के लिए निकला । वन में चाण्डाली से युक्त मद्य मांस को खाने वालेमतवाले चाण्डालों ने उसे पकड़ कर कहा । हे द्विजात्मज ! ॥ ४१-४२।।
मद्य, मांस और स्त्री के मध्य जो तुम्हें अच्छी लगे, उसमें एक का अपनी इच्छा के अनुसार भोग कर तुम स्नान के लिए जाओ || ४३ ।।
अन्यथा मरणकाल तक जाह्नवी माता दुर्लभ हो जायगी। उस बात को सुनकर बह ब्राह्मण भी मन में विचार करने लगा ।। ४४ ॥
जो पाप से लिप्त करने वाले, नरफ दुःख का कारण है, ऐसे कुल और गोत्र का क्षय करने वाले मांस को ब्राह्मण कैसे खायेंगे ? ४५ ।। कहा भी है
जो ब्राह्मण तिल और सरसों के बराबर भी मांस खाते हैं वे जब तक सूर्य और चन्द्रमा है, तब तक नरक में रहते हैं ।। ४६ ॥
किसी भ्रान्ति से भी काष्ठ की बनी हुई चाण्डाली का संगम होने पर पाप के कारण ब्राह्मणों ने प्रायश्चित्त कहा है ।। ४७ ॥
सूत्रामणि नामक यज्ञ में ब्राह्मणों ने बहेड़ा, गुड़ और जल से बनी हुई मद्य को ग्रहण किया । इस प्रकार वेदमूढ़ वह ब्राह्मण, मद्य पीकर प्रमत्त हो गया। दुर्बुद्धि वह कौपीन छोड़ कर नृत्य कर कष्टपूर्ण क्षुधा से पीड़ित हो गया ।। ४८-४९ ॥
और मांस खाकर कामाग्नि के प्रज्वलित होने से चाण्डाली का संसर्ग कर वह भी दुर्गति को गया ।। ५० ॥
अतः सज्जनों के द्वारा सैकड़ों दुःखों को प्रदान करने वाली मद्य का त्याग किया जाता है। मद्यपान करने वालों की संगति भो त्यागने योग्य है ।। ५१ ॥
गणिका के संसर्ग से भी पापराशि कही गई है। मद्य, मांस में रत होने, परस्त्री दोष, तथा शिकार खेलने से ब्रह्मदत्तादि राजा नष्ट हो गये। चोरी से शिवभूति आदि तथा परस्त्री से रावण आदि नाश को प्राप्त हो गए ।। ५२-५३ ।।
अतः शिकार खेलना, चोरी करना तथा परस्त्री गमन नरक के कारण हैं। सज्जनों को पाप प्रदान करने वाली दुष्टता का सदा त्याग करना चाहिए ।। ५४॥
सु-६