________________
पञ्चमोऽधिकार:
८३ अत्यधिक रूप से पांच अणुव्रत, तीन गुणन्नत और चार शिक्षाप्रत बुद्धि रूपी धन बालों को पालना चाहिए ॥ ५५ ।।
सार रूप धर्म को जानने वालों को नित्य रात्रिभोजन त्यागना चाहिए । धर्म तत्व को जानने वाले लोगों में श्रेष्ठ जनों को बिना छना जल छोड़ना चाहिए ।। ५६ ॥
मांस त्याग य व्रत की विशुद्धि के लिए दया धर्म परायणों को चमड़े में जल, घो आदि का रखना सदा त्यागना चाहिए ।। ५७ ।।
मद्य, मांसादिक के दिखाई देने पर भोजन का परित्याग कर देना चाहिए । श्रावकों को सदा कन्दमूलादिक छोड़ना चाहिए ।।५८ ।।
सुख के साधन पात्र दान सदा अपनी शक्ति से करना चाहिए 1 उसके भेद होते हैं आहार दान, अभय दान, औषधि दान और शास्त्र दान ।। ५२ ।।
श्रीमज्जिनेन्द्रों की पूजा सदा सद्गति प्रदान करने वाली होती है। जिनेन्द्र स्तुति, जाप में उत्तम मन लगाना ये सब पाप को नष्ट करने वाले हैं || ६० ॥
शास्त्र का श्रवण नित्य करना चाहिए। उत्तम बुद्धि का रक्षण लक्ष्मी, कल्याण और यश को करने वाला एवं कर्म रूपी आस्रव का निवारण करने वाला है ।। ६१ ॥ ___जैन तस्व को जानने वाले लोगों को अन्त में सल्लेखना धारण करना चाहिए | सैकड़ों सुखों को प्रदान करने वाला परिग्रह त्याग करना चाहिए ।। ६२ ।।
इत्यादि धर्म सद्भाव को सुनकर वे समस्त राजादिक सुगुरु को नमस्कार कर अत्यधिक आनन्द से भर गए ॥६३ ।।
कुछ भन्मों ने जिनकथित उपवास सहित व्रत, शोल, सम्यक्त्वपूर्वक ग्रहण कर विशेष रूप से धर्म का आश्रय लिया ॥ ६४ ॥
अनन्तर सेठ वृषभदास ने वैराग्ययुक्त मन से संसार की असारता आदि के विषय में सोचा ।। ६५ ।।
यौवन वृद्धावस्था से ब्याप्त है, सुख का अवसान दुःख रूप है, लोक में लक्ष्मी शरत्कालीन मेघ के समान स्थिर है ।। ६६ ॥ ____ आश्चर्य की बात है, मोह रूपी महाशत्रु के वश नित्य स्त्री और स्वर्ण को तृष्णा से मैंने व्यर्थ ही समय बिता दिया ।। ६७ ।।
पुत्र, मित्र, स्त्री आदि सब बुलबुले के समान हैं। भोग सर्प के शरीर के समान आभा वाले, तरक्षण प्राण पर प्रहार करने वाले हैं ॥ ६८ ।।