________________
द्वितीयsfaकार:
२७
नरक प्रदान करने वाले सप्त व्यसन विशेष रूप से छोड़ देना चाहिए। जिनसे इस संसार में बड़े लोग भी क्षय को प्राप्त हुए ।। १३ ।।
अच्छी बुद्धिवाले का संकल्प पूर्वक सदा त्रस जीवों की रक्षा करना पुण्य है । विद्वानों को असत्यवाक्य छोड़ देना चाहिए; क्योंकि यह निर्दयता का कारण है || १४ ॥
अदत्तादान का त्याग करना भव्य जीवों की सम्पति प्रदान करते वाला होता है । सुगति रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए अपनी स्त्री में नित्य सन्तोष करना चाहिए ।। १५ ।।
समस्त गृहस्थों को समस्त परिग्रहों की संख्या निर्धारित करना चाहिए, जो कि सन्तोषकारिणो होती है, जिस प्रकार कि सूर्य की प्रभा कमलिनी के लिए सन्तोषकारिणी होती हैं ॥ १६ ॥
सुखार्थी भव्यों को नित्य रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। यह श्रावकों का मुख्य धर्म है जिस प्रकार इन्द्रियों में नेत्र मुख्य हैं ॥ १७ ॥ श्रेष्ठ विद्वानों को नित्य प्रमाद छोड़कर उत्तम वस्त्र से शुभ लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु जल छानने का प्रयत्न करना चाहिए ।। १८ ।।
गुणव्रत तीन प्रकार का होता है - १. दिग्नत २. देशबत और ३. अनर्थदण्डव्रत । भव्यों को प्रयत्न पूर्वक इनका पालन करना चाहिए। यह सुगति को प्रदान करने वाला होता है ॥ १९ ॥
I
कन्दमूल तथा पत्र शाकादि का समिश्रण जो जिनों ने त्यागने योग्य कहा है, उसका विद्वानों को सर्वथा त्याग करना चाहिए ॥ २० ॥
चार शिक्षावत आवकों के हितकारी हैं। सामायिक व्रत पूर्वक जिन प्रतिमा और पंचपरमेष्ठी की स्तुति महाधर्मानुरागी महाभव्त्रों को तोनों सन्ध्याओं में सुखपूर्वक करना चाहिए ।। २१-२२ ।।
अष्टमी और चतुर्दशी को प्रोषध किया जाता है। यह कर्मों को निर्जरा का हेतु और महान् अभ्युदय प्रदान करने वाला होता है ॥ २३ ॥ भोगोपभोग की वस्तुयें, आहार, वस्त्रादिक की संख्या सुश्राचकों के लिए सन्तोषकारिणी कही गई है || २४ ||
सुख को चाहने वालों को उत्तम, मध्यम और के पात्रों को आहार, अभय, भैषज्य और शास्त्र ये देना चाहिए || २५ |
जो अत्यधिक रूप पाँच महाव्रत, तीन मनोहर गुप्तियाँ तथा पाँच समितियों का पालन करता है, वह श्रेष्ठ (उत्तम) पात्र है || २६ ॥
जघन्य तीन प्रकार चार प्रकार के दान