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तृतीयोऽधिकारः श्री जिनराज के सुन्दर चरणकमलद्वय की पूजा करना पुण्य है । सारस्वरूप अतुल सुपात्र का दान पुण्य है । व्रतों का आरोपण पुण्य है । निर्मल शील रूपी रत्न का धारण करना और पर्व पर उपवासादि करना पुण्य है, नित्य परोपकार करना पुण्य है। इस पुण्य का हे भव्य लोगों, तुम लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए सेवन करो ।। १०७ ।।
इस प्रकार श्री सुदर्शनचरित में पञ्चनमस्कार माहात्म्य प्रकाशक मुमुक्षु श्री विद्यानन्द निरचित सुदर्शनजन्म महोत्सव
व्यावर्णन नामक तृतीय अधिकार पूर्ण हुआ।