________________
तृतीयोऽभिकार: जहाँ पर सम्यक्त्व, व्रत, उत्सम वस्त्र, रत्न तथा वेशभूषा से सुशोभित नारियाँ भी रूप से सम्पन्न और सम्पदाओं से मनोहर हैं ॥ ४० ॥
जो नगरी सत्पुत्र और फल से संयुक्त है, दान, पूजादि से मण्डित है तथा जहाँ परोपकार में तत्पर कल्पलतायें अत्यधिक जयशील हैं ।। ४१ ||
जहाँ पर देवेन्द्र, नागेन्द्र और नरेन्द्रादि से पूजित वासुपूज्य जिन ने जन्म लिया, उस नगरी को कौन वर्णन कर सकता है ? ॥ ४२ ॥
उस चम्पापुरी के मध्य प्रजा का हितकारो, प्रताप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करनेवाला धात्रीवाहन नामक राजा सुशोभित हुआ ||४३।।
जिस परम राजा के चरणकमल युगल को नित्य रूप से भ्रमरों के समूह कमलों के समान चारों ओर से सेवन करते हैं ॥४४॥
नीतिशास्त्र को जानने वाला, रूप में कामदेव को जीतने वाला, धर्मवान् वह राजा धन को अपेक्षा कुबेर के समान सुशोभित हुआ ॥४५||
वह राजविद्याओं में लगा हुआ, सात व्यसनों से रहित, दाता, भोक्ता, प्रजाओं को अभीष्ट, मद रहित, निपुण ।। ४६ ।। सप्तोंग राज्य से सम्पन्न, विद्वान्, पंचांग मन्त्र को जानने वाला, छः प्रकार के ( काम, क्रोधादि) शत्रुओं से रहित तथा (प्रभु, मन्त्र और उत्साह) तीन शक्तियों से सुशोभित था ।। ४७ ।।
उसने जिनभाषित स्वामी, अमात्य, सुहृत, कोष, देश, दुर्ग और सेना के आश्रित इस सप्तांग राज्य को प्राप्त किया था ॥ ४८ ॥
वह सहाय, साधनोपाय, देश तथा कोश का बलाबल तथा विपत्ति का प्रतीकार, इस प्रकार पंचांग मंत्र का आश्रय लेता था ।। ४९ ।।
काम, क्रोध, मान, लोभ, हर्ष तथा मद ये राजा के छः प्रकार के अन्तरंग शत्रुओं का समूह होता है ॥ ५० ॥
पहली प्रभुशक्ति, दूसरी मंत्रशक्ति तथा तोसरी उत्साह शक्ति, इस प्रकार राजाओं को शुभा तीन शक्तियां होती हैं ।। ५१ ।।
इत्यादि अत्यधिक सम्पत्ति वाले उस राजा की रूप और लावण्य से मण्डित अभयमती नामक पत्नी, थो ।। ५२ ।।
जिस प्रकार शची इन्द्र की, रोहिणी चन्द्रमा की तथा सूर्य की पत्नी. होती है उसी प्रकार उसकी इष्ट प्राणवल्लभा रण्णादेवी हुई ॥५३ ।।