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प्रथमोऽधिकारः जिसके सुनने से सम्पत्ति दोनों लोकों में शुभ होती है, हे भव्य सज्जनों! सुख के कारण उन सुदर्शन मुनि के चरित्र को सुनो ।। ३६ ।।
समस्त द्वीप समुद्रों के मध्य में स्थित जम्बूद्वीप में एक लाख योजन प्रमाण वाला सुदर्शन मेरा है ।। ३७ ।। ___ जिसके चारों वनों में, चारों दिशाओं में अत्यधिक समुत मिनेन्द्र प्रतिभाओं से युक्त, सुख देने वाले भवन हैं।॥ ३८ ॥
उसके दक्षिण की ओर सुखदायक, जिनेन्द्र भगवान् के पंचकल्याणकों से पवित्र उत्तम भरत क्षेत्र है ।। ३९ ।। ____ वहाँ पर भुवन में विख्यात मगध नामक देश है, जहाँ पर अपने पूर्व पुण्य से लोग सुखपूर्वक रहते हैं ।। ४० ।। ___ अत्यधिक सुख को प्रदान करने वाला जो नाना आकार वाले अनेक नगर, ग्राम, पुर और पत्तन आदि से सुराजा के समान सुशोभित होता है।॥ ४१ ॥
धन-धान्य, मान्य जन और सम्पदादि से भरा हुआ जो देशराज सुशो. भित है, अथवा जो चक्रवर्ती की निधि है ।। ४२ ॥
जहां पर स्वच्छ जल वाले, सुविस्तीणं, बहुत बड़े मानसरोवर से उपमा देने योग्य अथवा बड़े लोगों के मनके समान नित्य कमलों की खान जलाशय हैं ।। ४३ ।।
अनेक प्रकार के इक्षुओं से, अन्य रसों से, सरस अच्छे फल आदि से जो अपने से उत्पन्न सुरसपने को अत्यधिक दिखलाता है ।। ४४ ॥ ___जहाँ पर मार्ग में सफल, अच्छी कान्ति बाले सबको प्रकृष्ट रूप से संतृप्त करने वाले सज्जन अत्यधिक रूप से सुशोभित होते हैं अथवा बनादि में अच्छी छाया वाले, सबको तृप्त करने वाले सफल ऊँचे ऊँचे वृक्ष अस्थधिक सुशोभित होते हैं ।। ४५ ।।
जहाँ पर देश, पुर, ग्राम, पत्तन, उत्तम पर्वत और वन में उत्तम ध्वजादि से जिनेन्द्र भवन अत्यधिक शोभित होते हैं ।। ४६ ।।
जहाँ पर आदरपूर्वक नित्य जिनेन्द्रों की यात्राओं से, बड़ी-बड़ी प्रतिष्ठाओं से भव्य महान् शुभ पुण्य का संचय करते हैं ।। ४७ ।।
जहाँ पर दर्शन और व्रतादि से युक्त श्रावक महामान पात्रदानों से तथा सज्जनों से घिरे होकर जैनेन्द्र धर्म करते हैं ।। ४८ ॥ ___ जहाँ पर नारियाँ भी रूप से युक्त, सम्यक्त्व रूपी व्रत से मण्डित, धर्म कार्यों में पण्डित तथा पुत्र रूपी सम्पदा से सुशोभित हैं ।। ४९ ।।