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प्रथमोऽधिकारः
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उसके राज्य की समस्त प्रजा सद्धर्म में तत्पर हुई। लौकिक वाक्य सच ही है कि जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है ॥ ६३ ॥
उस राजा के रक्षा कार्यकत्रियों का आघात सूर्य में ही था अन्यत्र कराभिघात अर्थात् टेक्स का अभिघात नहीं था, अतः समस्त लोक शोकरहित था ।। ६४ ।
उसकी कमललोचना चेलना नामक धर्मपरायणा रानी थी। वह पतिव्रत रूप धर्म की मानों पताका थी ॥ ६५ ॥
उसके रूप के सदृश न तो उर्वशी थी और न तिलोत्तमा । चूँकि वह अद्वितीय आकृति थी, अतः गृहदीपिका के समान सुशोभित होती थी ।। ६६ ।
उस प्रकार उन दोनों के जितेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे हुए धर्म-कर्म में लगे रहने पर वारिषेण आदि धर्मप्रेमी पुत्र हुए || ६७ ॥
प्रायः कर पृथ्वी पर अच्छे कुल में उत्पत्ति पवित्र होती है । अथवा चमकदार द्युति वाला मणि शुद्ध रत्नाकर से ही उत्पन्न होता है ॥ ६८ ॥ इस प्रकार उस राजा के उत्कृष्ट राज्य करते रहने पर कदाचित् पुण्ययोग से विपुलाचल के मस्तक पर ॥ ६९ ॥
चौतीस महा आश्चर्य और प्रातिहार्यों से विभूषित परम उदय वाले वीरनाथ विहार करते हुए आए ॥ ७० ॥
उन वर्द्धमान के प्रभाव से उस क्षण समस्त फलहीन वृक्ष फल से भरे हो गए ॥ ७१ ॥
अथवा जिनेन्द्र भगवान् के आगमन से सन्तुष्ट होकर आम्र, जम्बीर का वृक्ष ( मरुवक वृक्ष ), नारङ्ग, नारियल आदि के वृक्ष छाया और फलयुक्त हो गए ॥ ७२ ॥
समस्त निर्जल सरोवर सजल हो गए। वन में शीघ्र प्रज्वलित होने वाली अग्नि शान्त हो गई || ७३ ॥
क्रूर सिंहादिक भी वैर छोड़कर सुशोभित हुए अथवा दयारस से सुशो भित, प्रशान्त सज्जन हो गए ॥ ७४ ॥
मृगी प्रसन्नता से सिंह के बच्चों का, गायें व्याघ्री के शिशुओं का, मयूरी सर्प के बच्चों का प्रीतिपूर्वक पुत्रों के समान स्पर्श करने लगीं ॥ ७५ ॥
अन्य विरोधी भैंसे, घोड़े आदि पशु भी श्रावक हो गए। भीलादि की तो बात ही क्या ? ।। ७६ ।।