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प्रथमोऽधिकारः
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जिन्होंने मिथ्यात्व रूपी अन्धकार को ध्वस्त कर दिया है, जो विशद गुणों के समुद्र है, स्वर्ग तथा मोक्ष के एक मात्र मार्ग हैं, जो सैकड़ों इन्द्रों से सेवित हैं, भव्य कमलों के समूह के लिए सूर्य स्वरूप हैं, समस्त पापों का हरण करने वाले हैं तथा मुक्ति रूपी साम्राज्य के कर्ता हैं, वे जिनवीर जयशील ह्रीं ॥ १३१ ॥
इस प्रकार श्री सुवन चरित में पश्चनमस्कार माहात्म्य प्रदर्शक मुमुक्षु श्री विद्यानन्द रचित श्री महावीर तीर्थंकर परमदेव समागम का वर्णन करने वाला प्रथम अधिकार समाप्त हुआ 1