Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ४, १४. ]
यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
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संसरिदूण बादरतसपज्जत्तसुववण्णो । तसणिद्देसो यावर डिसेहफलो । थावरतं किमिद पडिसिज्झदे ? थावरजोगादो असंखेज्जगुणेण तसुक्कस्सजोगेण कम्मसंकलणङ्कं थावरकम्मट्ठिदीदो संखेज्जगुणट्ठिदीसु कम्मक्खंधे विरलिय गोवुच्छाण सुहुमत्तविहाणट्ठमुक्कडिदूण दोहि करणहि ओकड्डणाणिराकरणङ्कं च । पज्जत्तणिद्देसो अपज्जत्तपडिसेहफलो । किमट्ठमपज्जत्तेभावा पडिसिज्झद ? तिविहअपज्जत्तजेोगेर्हितो असंखेज्जगुणेहि तिविह॑पज्जत्तजोगेहि कम्मसंकलण सुहुमणिसेग उवसामणा-णिकाचणेहि ओकड्डणापडिसेहद्वं च । बादरणिद्देसो सुहुमत्तपडिसेहफलो । थावरपडिसेहेणेव सुहुमत्तं पडिसिद्धमण्णत्थ सुहुमाणमभावादोत् उत्ते-- ण, सुहुमणामकम्मोदयजणिदसुहुमत्तेण विणा विग्गहगदीए वट्टमाणतसाणं सुहुम
रहित कर्मस्थिति प्रमाण काल तक परिभ्रमण करके बादर त्रस पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ । सूत्रमें त्रस शब्द के निर्देशका फल स्थावरोंका प्रतिषेध करना है ।
शंका- • इस प्रकार स्थावरोंका प्रतिषेध किसलिये किया जाता है ?
समाधान - स्थावरयोगसे असंख्यातगुणे त्रसोंके उत्कृष्ट योग द्वारा कर्मोंका संचय करनेके लिये, स्थावरोंकी कर्मस्थितियोंसे संख्यातगुणी कर्मस्थितियोंमें कर्मस्कन्धोंका विरलन करके गोपुच्छों की सूक्ष्मताका विधान करनेके लिये, तथा उत्कर्षण करके दोनों करणों द्वारा अपकर्षणका निराकरण करनेके लिये स्थावरोंका प्रतिषेध किया गया है ।
पर्याप्तकोंके निर्देशका फल अपर्याप्तकोंका निषेध करना है । शंका - अपर्याप्तभावका प्रतिषेध किसलिये किया जाता है ?
समाधान - तीन प्रकारके अपर्याप्तकों के योगों की अपेक्षा असंख्यातगुणे तीन प्रकार के पर्याप्तकों के योगों द्वारा कर्मका संचय करनेके लिये, अधस्तन निषेकोंकी सूक्ष्म रूपसे रचना करनेके लिये और उपशामना एवं निकाचना करण द्वारा अपकर्षणका प्रतिषेध करनेके लिये अपर्याप्तकोंका प्रतिषेध किया गया है ।
बादर शब्दके निर्देशका प्रयोजन सूक्ष्मताका प्रतिषेध करना है ।
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शंका-स्थावरका प्रतिषेध करनेसे ही सूक्ष्मताका प्रतिषेध हो जाता है, क्योंकि, सूक्ष्म जीव और दूसरी पर्याय में नहीं पाये जाते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, यहांपर सूक्ष्म नामकर्मके उदय से जो सूक्ष्मता उत्पन्न
१ प्रतिषु ' असं ज्अगुणतिविह- ' इति पाठः ।
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२ अ आ-सप्रतिषु -मुप्पज्जत्त-' इति पाठः ।
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