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१, २, ४, २०७. ]
वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया
असंखेज्जदिभागो | कुदो ? संखेज्जगुणवड्डि हाणिविसयादो असंखेज्जगुणवड्डि-हाणिविसयस्स असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो । वड्ढि - हाणिकालो विसेसाहियो । केत्तियमेत्तेण ? सेसवड्ढा - हाणि - कालमेत्तेण । एवं वड्ढिपरूवणा समत्ता ।
अप्पा बहुपत्ति सव्वत्थोवाणि अट्ठसमइयाणि जोगट्टाणाणि ||
अप्पा बहुगपरूवणा किम मागदा ! अट्ठसमइयादिजोगट्ठाणाणं सेडीए असंखेज्जदिभागण अवगदपमाणाणं थोवबहुत्तपरूवणङ्कं । सव्वत्थोवाणि' त्ति भणिदे उवरि भण्णमाणजोगेट्ठाणेहिंतो थोवाणि त्ति भणिदं होदि ।
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दोसु वि पासेसु सत्तसमइयाणि जोगट्टाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २०७ ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । उवरि बुच्चमाणअ पाबहुगपदेसेसु सव्वत्थ एसो चेव गुणगारो वत्तव्वो ।
कार आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, संख्यातगुणवृद्धि और हानिके विषय से असंख्यात गुणवृद्धि और हानिका विषय असंख्यातगुणा पाया जाता है । वृद्धि और हानिका काल उससे विशेष अधिक है । कितने मात्र विशेष से वह अधिक है ? वह शेष वृद्धियों और हानियोंके काल मात्र विशेषसे अधिक है । इस प्रकार वृद्धिप्ररूपणा समाप्त हुई ।
अल्पबहुत्व के अनुसार आठ समय योग्य योगस्थान सबमें स्तोक हैं ॥ २०६॥ शंका - अल्पबहुत्वप्ररूपणा किसलिये प्राप्त हुई है ?
समाधान - श्रेणिके असंख्यातवें भाग स्वरूपसे जिनका प्रमाण ज्ञात हो चुका है उन अष्टसामयिक आदि योगस्थानोंका अल्पबहुत्व बतलाने के लिये अल्पबहुत्वप्ररूपणा प्राप्त हुई है ।
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सबमें स्तोक हैं ' ऐसा कहनेपर आगे कहे जानेवाले योगस्थानोंसे स्तोक हैं, यह अभिप्राय ग्रहण किया गया है ।
दोनों ही पार्श्वभागों में सात समय योग्य योगस्थान दोनों ही तुल्य व उनसे असंख्यातगुणे हैं ॥ २०७॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । आगे क जानेवाले अल्पबहुत्वप्रदेशों में सर्वत्र यही गुणकार कहना चाहिये ।
१ काप्रतौ ' सव्वत्थोवा' इति पाठः । २ अ आ-काप्रतिषु भण्णमाणओजोग', ताप्रतौ ' मण्णमाण [ओ ] जोग' इति पाठः ।
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