Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 533
________________ ५१२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, २१३. आउअभागो थोवो णामा-गोदे समो तदो अहियो । आवरणमंतराए भागो अहिओ दु मोहे वि ॥ २८ ॥ सम्वुवरि वेयणीए' भागो अहिओ दु कारणं किंतु । पयडिविसेसो कारण णो अण्णं तदणुवलंभादो ॥ २९ ॥) एवं वेयणदव्वविहाणेत्ति समत्तमणिओगद्दारं ।। आयुका भाग स्तोक है। उससे नाम और गोत्रका भाग विशेष अधिक होता हुआ परस्पर समान है । उससे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका भाग अधिक है। उससे अधिक भाग मोहनीयका है। वेदनीयका भाग सबसे आधिक है। किन्तु इसका कारण प्रकृतिविशेष है, अन्य नहीं है; क्योंकि, वह पाया नहीं जाता ॥२८-२९ ॥ इस प्रकार वेदनाद्रव्यविधान नामक यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। १ अ-आ-काप्रतिषु — मोहणी ए , तापतौ ' मोहणीए (वेयणीए)' इति पाठः । २ आउगभागो थोवो णामा-गोदे समो तदो अहियो । घादितिये वि य ततो मोहे ततो तदो तदिये ॥ सुह-दुक्खणिमित्तादो बहुणिज्जरगो तिवेयणीयस्स । सव्वेहितो बहुगं दव्वं होदि ति णिहिटुं॥ गो. क १९२.१९३ कमसो वुढठिईणं भागो दलियस्स होई सविसेसो । तइयस्स सबजेठो तस्स फुडत्तं जओ णप्पे ।। पं. सं. १, ५७८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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