Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे घेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[१२७ विक्खंभं विक्खंभे जोएदूण तिण्णि वि फालीयो पासे ठविदे पयदगोवुच्छविक्खंभं दोगुणहाणिआयदखेत्तं होदि । तेण दोगुणहाणिहाणंतरेण अवहिरिज्जदि त्ति वुत्तं ।
अधवा तेरासियकमेण पक्खेवरूवाणि भणिस्सामो । तं जहा-णिसेगभागहारतिण्णिचदुब्भागमेत्तगोवुच्छविसेसेसु जदि एगो पयदणिसेगो लब्भदि तो णिसेयभागहारचदुब्भागमेत्तगोवुच्छविसेसविक्खंभ-दिवड्वगुणहाणिआयदखेत्तम्मि किं लभामो त्ति सरिसमवाणिय पमाणेण भागे हिंदे गुणहाणिअद्धमत्तपक्खेवरूवाणि लभंति । ताणि दिवड्ढगुणहाणिम्हि पक्खित्ते दोगुणहाणीओ होति | ३२ । १२ । १ । ३२ । ४ । १२ । अधवा णिसेयभागहारतिण्णिचदुब्भागमेत्तगोवुच्छविसेसु जदि एगा पयदगोवुच्छा लब्भदि तो दिवड्ढगुणहाणिगुणिदणिसेगभागहारमेत्तगोवुच्छविसेसु किं लभामो त्ति सरिसमवणिय पमाणेणिच्छाए ओवट्टिदाए दोगुणहाणीयो लन्भंति [ ३२ । १६ । ३ । १ । ३२ । १६ । १२ लद्धं | १६) । एदेण सव्वदन्वे
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फालियां करके विस्तारको विस्तार में मिलाकर तीनों फालियोंको पार्श्व भागमें स्थापित करनेपर प्रकृत गोपुच्छ प्रमाण विस्तारवाला और दो गुणहानि प्रमाण आयत क्षेत्र होता है । इस कारण प्रकृत निषेककी अपेक्षा दोगुणहानिस्थानान्तरकालसे सब द्रव्य अपहृत होता है, ऐसा कहा है ।
अथवा, त्रैराशिक क्रमसे प्रक्षेप अंकोंको कहते हैं। यथा- निषेकभागहारके तीन चतुर्थ भाग मात्र गोपुच्छविशेषों में यदि एक प्रकृत निषेक प्राप्त होता है तो निषेकभागहारके एक चतुर्थ भाग मात्र गोपुच्छविशेष विस्तारवाले और डेढ़ गुणहानि प्रमाण आयत क्षेत्रमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार सदृशका अपनयन करके प्रमाण राशिका भाग देनेपर गुणहानिके अर्ध भाग मात्र प्रक्षेप अंक प्राप्त होते हैं । उनको डेढ़ गुणहानिमें मिलानेपर दो गुणहानियां होती हैं। - ४४३२४१२ = ४ प्रक्षेप अंक; १२+ ४ = १६ दो गुणहानि ।
अथवा, निषेकभागहारके तीन चतुर्थ भाग मात्र गोपुच्छविशेषों में यदि एक प्रकृत गोपुच्छा (प्रकृत निषेक ) प्राप्त होती है तो डेढ़गुणहानिगुणित निषेकभागहार मात्र गोपुच्छविशेषोंमें कितनी प्रकृत गोपुच्छायें प्राप्त होंगी, इस प्रकार सदृशका अपनयन कर प्रमाणसे इच्छाको अपवर्तित करनेपर दो गुणहानियां प्राप्त होती हैं।
गो. वि. ३२, नि. भा. १६, उसका तीन चतुर्थांश १२, ३२४१२४१ - १६, लब्ध १६ होता है । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर इच्छित निषेक आता है
१ प्रतिषु — लोएदण ' इति पाठः।
२ अप्रतौ । ३२ । ८ । १६J' इति पाठः ।
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