Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 494
________________ [ ४७३ . १, २, ४, १८६.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया संकलणागुणवग्गणवग्गेण गुणेयव्वा । तदिया वि तिगुणफद्दयसलागगुणरूवूणवग्गणसंकलणाए गुणेयव्वा । चउत्था वि ताए चेव संकलणाए एगादिएगुत्तररूवगुणिदाए गुणेयव्वा । पुणो एदेसिं पंतिआयारेण द्विददव्वाणं मेलावणे कीरमाणे पंतीणं आदिदव्वाणि जहाकमेण रूवूणफद्दयसलागसंकलणाए च तस्स दुगुणसंकलणासंकलणाए च फद्दयसलागाहि च तासिं संकलणाए च गुणेयवाणि । वग्गणविसेसस्स हेट्ठिमअट्ठरूवेहि अंतिमच्छेदं गुणिय मेलाविदे सव्वपिंडमेदं |८|| ४ | ४ | ९ | ९/९ | ११ || पुचिल्लव्वा कादण पुव- १६ । । || १८ | विहाणेणवणिः सेसमेत्तिय होदि |८० ४ ४ | ९|९|३१ | । संपहि उवरिमगुणहाणीण दव्वे उप्पाइज्जमाणे | ४८ | तासिं तासिं हेट्ठिमगुणहाणिसलागअण्णोण्णभत्थरासिणा पढमगुणहाणिआदिफद्दयं खंडिय तत्थ एगखंडं गुणहाणिफद्दयसलागवग्गेण गुणिय पुणो तप्पहुडिहेहिमगुणहाणिसलागदुगुणरूवूणद्वेण च गुणिय पुध द्वविय पुणो अहियदबे आणिज्जमाणे आदिगुणहाणिवग्गणविसेसं इच्छिदगुणहाणिहेट्ठिमअण्णोण्णभत्थरासिणा खंडिय पुणो तप्पहुडिहेट्टिमगुणहाणिसलागतिगुणरूवूणछन्भागगुणहाणिफद्दयसलाग .पंक्तिको भी एक आदिक रूपोंकी दुगुणी संकलनासे गुणित वर्गणाके वर्गसे गुणित करना चाहिये। तृतीय पंक्तिको भी तिगुणी स्पर्धकशलाकाओंसे गुणित एक कम वर्गणाके संकलनसे गुणित करना चाहिये । चतुर्थ पंक्तिको भी एकको आदि लेकर एक-एक अधिक रूपोंसे गुणित उक्त संकलनासे ही गुणित करना चाहिये । फिर पंक्तिके आकारसे स्थित इन द्रव्योंको मिलाते समय पंक्तियोंके प्रथम द्रव्योंको क्रमशः एक कम स्पर्धकशलाकाओंकी संकलना, उसकी दूनी संकलनसंकलना, स्पर्धकशलाकाओं तथा उनकी संकलनासे गुणित करना चाहिये । वर्गणाविशेषके अधस्तन आठ रूपोंसे अन्तिम अंशको गुणित करके मिलानेपर समस्त पिण्डप्रमाण यह होता है (मूलमें देखिये)। इसे पहिलेके द्रव्यमेंसे समान खण्ड करके पूर्व रीतिसे कम करनेपर शेष इतना रहता है ( मूलमें देखिये)। ___ अब उपरिम गुणहानियों के द्रव्यको उत्पन्न कराते समय उन उनकी अधस्तन गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रथम गुणहानिके प्रथम स्पर्धकमें भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध हो उसको गुणहानिस्पर्धकशलाकाओंके वर्गसे गुणित करके फिरसे उसको आदि लेकर अधस्तन गुणहानिशलाकाओंके दने रूपोंसे हीन अर्ध भागसे गुणित करके पृथक् स्थापित करना चाहिये । फिर अधिक द्रव्यको लाते समय प्रथम गुणहानिके वर्गणाविशेषको विवक्षित गुणहानिसे अधस्तन गुणहानिकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे खण्डित कर फिर उसको आदि लेकर अधस्तन गुणहानिशलाकाओंके तिगुने रूपोंसे कम छठे भाग मात्र गुणहानिस्पर्धशलाकाओंके घनसे गुणित वर्गणाके वर्गसे ताप्रतौ दुगुणिय' इति पाठः। २ प्रतिषु 'विहाण्णवण्णिद' इति पाठः । छ,वे. १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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