Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 516
________________ ४, २, ४, २०० ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [ ४९५ णोववाद जो गट्ठाणाणमेगंताणुवड्ढिजोगडाणाणं च गदाणं परिणामजोगट्ठाणाणं च गहणं, गहणं; तेसिमेगसमयं मोत्तूण उवरि अवट्ठाणाभावादो । पंचसमइयाणि जोगट्टाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ जाणि जोगट्ठाणाणि एग समयमादि काढूण जाव उक्कस्सेण पंचसमओ त्ति जीवा परिणमंति ताणि पंचसमइयाणि णाम । तेसिं पि पमाणं सेडीए असंखेज्जदिभागो । एदाणि जोगट्ठाणाणि उवरि भण्णमाणछसमइयादिजोगट्ठाणाणि च एइंदियादि पंचिंदियावसाणाण परिणामजोगेसु जोजेदव्वाणि, ण सेसेसु । एवं छसमइयाणि सत्तसमइयाणि अट्ठसमइयाणि जोगट्टाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ १९९ ॥ पंचसमइयजोगट्टाणेहिंतो उवरिमाणि छ- सत्त- अट्ठसमयाणं पाओग्गाणि जाणि जोगद्वाणाणि तेसि पमाणं पुध पुध सेडीए असंखेज्जदिभागो ! पुणरवि सत्तसमइयाणि समइयाणि पंचसमइयाणि चदुसमइयाणि उवरि तिसमइयाणि बिसमइयाणि जोगट्टाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ २०० ॥ स्थानों का भी ग्रहण करना चाहिये, उपपादयोगस्थानों और एकान्तानुवृद्धियोगस्थानोंका ग्रहण नहीं करना चाहिये; क्योंकि, उनका एक समयको छोड़कर आगे अवस्थान सम्भव नहीं है। पंचसामयिक योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ।। १९८ ॥ जिन योगस्थानों में जीव एक समयको आदि लेकर उत्कर्ष से पांच समय तक परिणमते हैं वे पंचसामयिक कहलाते हैं । उनका भी प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है । इन योगस्थानोंको तथा आगे कहे जानेवाले षट्सामयिक आदि योगस्थानोंको एकेन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय तकके परिणामयोगों में जोड़ना चाहिये, शेषों में नहीं । इसी प्रकार षट्सामयिक, सप्तसामयिक व अष्टसामयिक योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ १९९ ॥ पंचसामयिक योगस्थानोंसे आगेके छह, सात व आठ समयोंके योग्य जो योगस्थान हैं उनका प्रमाण पृथक् पृथक् श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है । फिर भी सप्तसामयिक, षट्सामयिक, पंचसामयिक, चतुःसामयिक तथा उपरिम त्रिसामयिक व द्विसामयिक योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ २०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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