Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 515
________________ ४९४) छक्खडागमे वेयणाखंड ।१, २, ५, १९७. अजहण्ण-अणुक्कस्सजोगट्ठाणफद्दयाणि असंखेज्जगुणाणि । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । अणुक्कस्सजोगट्ठाणफद्दयाणि विसेसाहियाणि जहण्णजोगट्ठाणफदएहि ऊणउक्कस्सजोगहाणफद्दयमेत्तेण । सव्वजोगट्ठाणफद्दयाणि विसेसाहियाणि जहण्णजोगट्ठाणफद्दयमेत्तेण । एवं परंपरोवणिधा समत्ता । समयपरूवणदाए चदुसमइयाणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ १९७ ॥ एत्थ समयपरूवणदाए त्ति किमदं कुच्चदे ? पुवुद्दिट्ठअहियारसंभालणटुं । समयपरूवणा किमट्ठमागदा ? समएहि विसेसिदजोगट्ठाणाणं पमाणपरूवणहूं; समएहि परूवणदा समयपरूवणदा, तीए 'समयपरूवणदाए' ति सद्दवुप्पत्तीदो । जेसु जोगट्ठाणेसु जीवा चत्तारिसमयमुक्कस्सेण परिणमंति ताणि जोगट्ठाणाणि चदुसमइयाणि त्ति भणंति । तेसिं पमाणं सेडीए असंखेज्जदिभागो, एवं वुत्ते सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तप्पहुडि जाव पंचिंदियलद्धिअपज्जत्तओ त्ति एदेसिं परिणामजोगट्टाणाणं एइंदियादि जाव सण्णिपंचिंदियणिव्वात्तपज्जत्तजहण्णपरिणामजोगहाणप्पहुडि उवरि तप्पाओग्गसेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणं णिरंतरं इस गुणकारसे अभिप्राय योगगुणकारका है । उत्कृष्ट योगस्थानके स्पर्धकोले अजघन्य. अनुत्कृष्ट योगस्थानोंके स्पर्धक असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? गुणकार श्रेणिका असंख्यातवां भाग है। उनसे अनुत्कृष्ट योगस्थानोंके स्पर्धक जघन्य योगस्थानके स्पर्धकोसे हीन उत्कृष्ट योगस्थान सम्बन्धी स्पर्धको मात्र विशेषसे अधिक हैं। उनसे सब योगस्थानोंके स्पर्धक जघन्य योगस्थानके स्पर्धको मात्र विशेषसे अधिक हैं। इस प्रकार परम्परोपनिधा समाप्त हुई। समयप्ररूपणताके अनुसार चार समय रहनेवाले योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है॥ १९७॥ शंका-सूत्रमें 'समयपरूवणदाए' यह पद किसलिये कहा गया है ? समाधान- उक्त पद पूर्वोद्दिष्ट अधिकारका स्मरण करानेके लिये कहा गया है। शंका- समयप्ररूपणा किसलिये प्राप्त हुई है ? समाधान-समोसे विशेषताको प्राप्त हुए योगस्थानों के प्रमाणको बतलानेके लिये समयप्ररूपणाका अवतार हुआ है, क्योकि, समोसे प्ररूपणता समयप्ररूपणता, उस समयप्ररूपणतासे; ऐसी यहां शब्दकी व्युत्पत्ति है। जिन योगस्थानों में जीव उत्कर्षसे चार समय परिणमते हैं वे चतुःसामायिक अर्थात चार समय रहनेवाले योगस्थान कहे जाते हैं। उनका प्रमाण श्रेणिके असंख्यातवे भाग मात्र है, ऐसा कहनेपर सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकको आदि लेकर पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तक इनके परिणामयोगस्थानोंका तथा एकेन्द्रियको आदि लेकर संशी पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकके जघन्य परिणामयोगस्थानसे लेकर आगे तत्मायोग्य श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र निरन्तर गये हुए परिणामयोगFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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