Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 497
________________ ४७६] छक्खंडागमे वेयणाखंड । ४, २, ४, १८६० भाग हरेज्ज। केण ? पडिणा- पुव्विल्लपडिरासिठविदरासिणा। किविसिडेण ? आदिमच्छेदद्धगुणिदेणेत्ति वुत्ते आदिमच्छेदं छरूवाणि, तस्सद्धं तिण्णि, तेहि गुणिय भागे गहिदे सरिसमवणिय लद्धं किंचूणसत्तिभागचत्तारिरूवाणि ताणि पुचिल्लदव्वस्स गुणगारं ठविदे सव्वगुणहाणीणं दव्वं मिलिणागच्छदि । पुणो एदं तेरासियकमेण जहण्णफद्दयपमाणेण कदे किंचूणछन्भागन्भहियफद्दयसलागदोवग्गमेतं होदि । तं च एदं |९|९|१३|| अहवा अणेण लहुकरणविहाणेण जहासरूवमाणिज्जदे । तं | ६ | जहापढमगुणहाणिदव्वं पुव्वुत्तविहिणा जहासरूवेणाणिदे एत्तियं होदि |८०1४|४/९/९/९/२|| पुणो एत्थतणदोरूवाणि एगगुणहाणि फद्दयसलागाओ एगफद्दय- ||१६ । वग्गणसलागाओ च अण्णोणं गुणिदे दोगुणहाणीयो होति । ताओ वग्गणविसेसस्स गुणगारं ठविदे एत्तियं होदि ८| 0 |१६|४|९|९|| पुणो बिदियगुणहाणिपढमादिफद्दयाणमुप्पायणटुं पढमगुण-| |१६ | ३ | हाणिपढमफद्दयद्धस्स ठविदगुण गाररूवाहियादिफद्दयसलागासु एगादिएगुत्तररूवाणि अवणिय गुणहाणिसलागगच्छसंकलण |३ करे ? 'पडिणा' अर्थात् पूर्वकी प्रतिराशि रूपसे स्थापित राशिसे । कैसी प्रतिराशिसे ? 'आदिमछेदद्धगुणिदेण' अर्थात् आदिम छेद छह अंक, उसके आधे तीन, उनसे गुणित करके भाग देनेपर समान राशिको कम करके कुछ कम तृतीय भाग सहित जो चार रूप प्राप्त होते हैं उनको पूर्व द्रव्यका गुणकार स्थापित करनेपर समस्त गुणहानियोंका द्रव्य मिलकर आता है । अब इसको त्रैराशिक क्रमसे जघन्य स्पर्धकके प्रमाणसे करनेपर वह कुछ कम छठे भागसे अधिक स्पर्धकशलाकाके दो वर्ग प्रमाण होता है । वह यह है (मूलमें देखिये )। अथवा, इस लघुकरणविधानसे स्वरूपानुसार गुण हानिद्रव्यको निकालते हैं। वह इस प्रकार है-पूर्वोक्त विधिसे प्रथम गुणहानिक द्रव्यको स्वरूपानुसार निकालनेपर वह इतना होता है (मूलमें देखिये)। फिर यहांके दो रूपों, एक गुण हानिकी स्पर्धकशलाकाओं, तथा एक स्पर्धककी वर्गणाशलाकाओंको परस्पर गुणित करनेपर दो गुणहानियां होती हैं। उनको वगंणाविशेषका गुणकार स्थापित करनेपर इतना होता है (मूल में देखिये)। पुनः द्वितीय गुणहानिके प्रथमादिक स्पर्धकोंको उत्पन्न करानेके लिये प्रथम गुणहानि सम्बन्धी प्रथम स्पर्धकके अर्ध भागके स्थापित गुणकार स्वरूप एक रूप अधिक दो रूप अधिक इत्यादि क्रमसे जानेवाली स्पर्धकशलाकाओं में से एकको आदि लेकर उत्तरोत्तर एक एक अधिक रूपोको घटा करके और गुणहानिशलाकाओंकी गच्छसंकलनाको मप्रतिपाठोऽयम् । प्रतिषु 'हारेज ' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु 'वुत्तं' इति पाठः। ३ तापतौ • 'जहण्णत्तफड्डय ' इति पाठः। ४ अ-ताप्रत्योः 'अण्णेण ' इति पाठः। ५ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ९।२। इति पाठः। ६ ताप्रती 'गुणहाणिं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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