Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

View full book text
Previous | Next

Page 504
________________ १, २, ४, १८८.) वेयणमहाहिवारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया णिग्गमा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा। जहणिया तेउक्काइयरासी असंखेज्जगुणा । सा चेव उक्कसिया विसेसाहिया । तेउक्काइयाणं कायट्ठिदी असंखेज्जगुणा । ओहिणिबद्धक्खेत्तस्स अण्णोण्णगुणगारसलागाओ असंखेज्जगुणाओ। तस्सेव वग्गसलागा असंखेज्जगुणा । तस्सेव अद्धछेदणया असंखेज्जगुणा । ओहिणाणस्स भेदा असंखेज्जगुणा । अनावसाणाणं गुणगारसलागाओ असंखेज्जगुणाओ। तेसिं चेव वग्गसलागा असंखेज्जगुणा । तेसिं चेव छेदणा असंखेज्जगुणा । अज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । णिगोदसरीराणमण्णोण्णगुणगारसलागाओ असंखेज्जगुणाओ। तेसिं वग्गसलामाओ असंखेज्जगुणाओ । तेसिं छेदणा असंखेज्जगुणा । तदो णिगोदसरीराणि असंखेज्जगुणाणि । णिगोदकायहिदी असंखेज्जगुणा । अणुभागबंधज्झवसायट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । जोगाविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । एदे जोगाविभागपडिच्छेदा च परियम्मे वग्गसमुट्टिदा ति परूविदा, एदेसु जोगाविभागपडिच्छेदेसु जोगगुणगारेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणोवट्टिदेसु जहण्णजोगट्ठाणाविभागपडिच्छेदा होति । ते वि कदजुम्मा । कुदो ? जोगगुणगारस्स कदजुम्मत्तादो। जोगहाणफद्दयसलागाओ वि कदजुम्माओ, अण्णहा जोगट्ठाणफद्दयाविभागपडिच्छेदाणं वग्ग संख्यातगुणे हैं। उनसे जघन्य तेजकायिकराशि असंख्यातगुणी है। उससे वही उत्कृष्ट विशेष अधिक है । उससे तेजकायिकोंकी कायस्थिति असंख्यातगुणी है । उससे अवधिशानके विषयभूत क्षेत्रकी अन्योन्यगुणकारशलाकायें असंख्यातगुणी हैं। उनसे उसकी ही वर्गशलाकायें असंख्यातगुणी हैं । उनसे उसके ही अर्धच्छेद असंख्यातगुणे हैं । उनसे अवधिज्ञानके भेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे अध्यवसानों की गुणकारशलाकायें असंख्यातगुणी हैं । उनसे उनकी ही वर्गशलाकायें असंख्यातगुणी है । उनसे उनके ही अर्धच्छेद असंख्यातगुणे हैं । उनसे अध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे निगोदशरीरोंकी अन्योन्यगुणकारशलाकायें असंख्यातगुणी हैं । उनसे उनकी वर्गशलाकायें असंख्यातगुणी हैं। उनसे उनके अर्धच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे निगोदशरीर असंख्यातगुणे हैं। उनसे निगोदोंकी कायस्थिति असंख्यातगुणी है । उससे अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान असंख्यातगुणे हैं । उनसे योगाविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। ये योगाविभागप्रतिच्छेद परिकर्ममें वर्गसमुत्थित बतलाये गये हैं । इन योगाविभागप्रतिच्छेदोंको पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र योगगुणकारसे अपवर्तित करनेपर जघन्य योगस्थानके अविभागप्रतिच्छेद होते हैं। वे भी कृतयुग्म हैं, क्योंकि, योगगुणकार कृतयुग्म है। योगस्थानकी स्पर्धक शलाकायें भी कृतयुग्म हैं, क्योंकि, इसके विना योगस्थान सम्बन्धी स्पर्धकोंके अविभागप्रतिच्छेद वर्गसमुत्थित नहीं बन सकते। बग्गपसंगा' १ अ-आ-काप्रतिषु 'बग्गपसंगा',ताप्रती 'वगप्पसंगा' इति पाठः।.अ.आप्रत्यो का-ताप्रत्योः 'वग्गप्पसंगा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552