Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 499
________________ ४७८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १८६. होदि |८| ०१६२५/९/२|पुणो एत्थ पणुवीसरूवे रूवमवणिय पुध द्वविय पणो । |१६|४|४|| अबसेसं विसिलेसं करिय तीहि रूवेहि अंतिमदोरूवाणि गुणिय पुव्विल्लदव्वेण सरिसछेदं कादूण मेलाविदे तदियगुणहाणिसव्वदव्वपमाणं हादि । तं च एवं | ८ | १६ | १६ ||९||| पुणो एदेण बीजपदेण जाव चरिमगुणहाणि त्ति ताव सव्वगुणहाणीणं दवपमाणं पुध पुध आणिज्जमाणे सव्वगुणहाणीणं गुणिज्जमाण गुणहाणिफद्दयसलागवग्गगुणिदपढमगुणहाणिजहण्णफद्दयपमाणं । एदस्स गुणगाररूवाणि गवोत्तरंसाणि दुगुणछेदाणि होदण गच्छंति । पुणो सव्वगुणहाणिगुणगारे मेलाविज्जमाणे पढमगुणहाणिगुणगारतिभागरूवं हेटवरि चदुहि गुणिय तप्पहुडिसव्वगुणगारा ठवेदव्या । ते च एदे | ४ | १३ | २२ | ३१ । ४० । ४९ । ५८ | ६७ ।। पुणो एदे गुणगारे |१२|२४|४८ ९६ १९२ | ३८४ | ७६८ | १५३६ | पुव्विल्लदोसुत्तगाहाहि मेलाविदे किंचूणछन्भागब्भहियदोरूवाणि आगच्छति । पुणो फद्दयसलागवग्गगुणिदजहण्णफद्दयस्स गुणगारं ठविय पुव्व दुगुणी स्पर्धकशलाकाओंसे गुणित करनेपर इतना होता है (मूलमें देखिये )। पुनः यहां पच्चीस रूपों में से एक रूपको कम करके पृथक् स्थापित कर और शेषको विश्लेषित करके तीन रूपोंसे अन्तिम दो रूपोंको गुणित कर पहिलेके द्रव्यके समान खण्ड करके मिलानेपर तृतीय गुणहनिके सब द्रव्यका प्रमाण होता है। वह यह है (मूलमें दखिये)। अब इस बीज पदसे अन्तिम गुणहानि पर्यन्त सब गुणहानियों के द्रव्यप्रमाणको पृथक् पृथक् निकालते समय सब गुणहानियोंकी गुणिज्यमान राशि गुणहानिकी स्पर्धकशलाकाओके वर्गसे गुणित प्रथम गुणहानिके जघन्य स्पर्धक प्रमाण है। इसके गुणकार रूप उत्तरोत्तर नौ नौ अधिक अंश व दुगुणे हार होकर जाते हैं। फिर सब गुणहानियोंके गुणकारको मिलाते समय प्रथम गुणहानि सम्बन्धी गुणकारभूत विभाग रूपको नीचे ऊपर चारसे गुणित कर उसको आदि लेकर सब गुणकारीको स्थापित करना चाहिये । वे ये हैं-१.३३, २३.३६, ३४३. ५९ १६१६६। अब इन गुणकारोंको पूर्वोक्त दो मूल गाथाओं द्वारा मिलाने पर कुछ कम छठे भागसे अधिक दो रूप आते हैं । पश्चात् स्पर्धकशलाकाओंके वर्गसे गुणित जघन्य स्पर्धकके गुणकारको ......................... १ अ-आ-काप्रतिषु ' गुणिज्जमाणं गुणहाणि' इति पाठः । २ तापतौ । ६७ । ३ तापतौ ‘एदेण' इति पाठः। 1१५३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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