Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 493
________________ ४७२ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १८६. पुग्वं व अवणिय १६/५/४/२/९/९/|| पुणो एदं पुचिल्लयाम्म ११|| पुणो आदिल्लदोदव्वाणि सरिसच्छेदाणि || || |१६| |२|८ कादूण मेलाविय एगरूवासंखेज्जदिभागं पक्खिविय ठवेदव्वं | ८० | २४ | दोगुणहाणिदव्याणं पस्से ठवेदव्वं |८| • ४ |९|२२|| पुणो चउत्थगुणहाणिव्वे आणिज्जमाणे पढम- १६ ।। ।। २४ फदयस्स अट्ठमभागं दोसु हाणेसु ठविय तत्थेगं फद्दयसलागतिगुणवग्गेण गुणिय अवरं पि तेसिं चेव संकलणाए गुणिय ठवेदव्वं' | ८| १६ | ४ ९९ | ३ ।। अवरं पि एदं ! ८ | १६ . ४ १९/९।। १६८ | | एदाणि दो वि।।१६। ८ । ।२। मेलाविदे थूलत्येण चउत्थगुणहाणिदव्वं होदि । तं च एदं |८|१६|४|९|९|| पुणो एत्थ अहियदव्वाणयणं वुच्चदे । तं जहा- पढमगुणहाणिवग्गणविसेसअट्ठमभागं चउसै ठाणेसु चदुपतिआयारेण रचे दूण तत्थादिमपंती आदिप्पहुडि तिगुणफद्दयसलागाहि गुणएगादिएँगुत्तरवग्गणवग्गेण गुणेयव्वा । बिदिया वि एगादिरूवाणं दुगुण ............................. मिलाकर उसमें एक रूपके असंख्यातवें भागका प्रक्षेप कर स्थापित करना चाहिये ( मूलमें दखिये )। फिर इसको पूर्वके द्रव्यमेंसे पहिल के ही समान कम करके दो गुणहानियों के द्रव्योंके पासमें स्थापित करना चाहिये (मूलमें देखिये)। फिर चतुर्थ गुणहानिके द्रव्यको लाते समय प्रथम स्पर्धकके आठवें भागको दो स्थानोंमें स्थापित कर उनमेंसे एकको स्पर्धकशलाकाओंके तिगुणे वर्गसे गुणित कर तथा दूसरेको भी उनकी ही संकलनासे गुणित कर स्थापित करना चाहिये । इन दोनोंको मिलानेपर स्थूल रूपसे चतुर्थ गुणहानिका द्रव्य होता है। वह यह है (मूलमें देखिये)। अब यहां अधिक द्रव्यके लाने का विधान कहते हैं । वह इस प्रकार है-प्रथम गुणहानिके वर्गणाविशेषके आठवें भागको चार स्थानों में चार पंक्तियोंके आकारसे रचकर उनमेंसे प्रथम पंक्तिको आदिसे लेकर तिगुणी स्पर्घकशलाकाओंसे गुणित एकको आदि लेकर एक-एक अधिक वर्गणावर्गसे गुणित करना चाहिये । दूसरी ताप्रतावतोऽग्रे ' तं च एवं ' इत्यधिकः पाठोऽस्ति । २ मप्रतिपाठोऽ यम् । प्रतिषु | १ | इति पाठः। ३ ताप्रतौ ' अट्ठमभागच उसु ' इति पाठः । ४ आ-ताप्रत्योः ' गुणे एगादि ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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