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३८२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
। ४, २, ४, १२२. समयणेरइयो च, सरिसा । संपहि पढमणिसेगपरिहाणिणिमित्तं केत्तियाणि जोगट्ठाणाणि ओदारिदो ? पढमणिसेगे जेत्तियां सयलपक्खेवा अस्थि तेत्तियमेत्ताणि ।
__णारगपढमगोवुच्छाए सयलपक्खेवपमाणं वुच्चदे । तं जहा - आउअबंधगद्धाए दिवड्डगुणहाणिमोवट्टिय पुणो तप्पाओग्गउक्कस्सजोगट्ठाणभागहारे भागे हिदे लद्धमेत्ता सगलपक्खेवा होति ।
संपहि चरिमसमयतिरिक्खद बिदियसमयणारगदव्वेण सरिसं कीरदे । तं जहाणेरइयपढमगोवुच्छाए तिरिक्खचरिमगोवुच्छाए च ऊणं णिरयाउअं बंधिदूण तिरिक्खचरिमसमए विदो च, गैरइयविदियसमए द्विदो च, पुचिल्लविहिणा णेरइयपढमसमयट्टिदो च, सरिसा । संपहि पढमसमयणेरइयदव्वस्सुवरि वड्ढाविज्जमाणे पक्खेवुत्तरकमेण सांतरट्ठाणाणि होति त्ति कटु पढमसमयणेरइयं मोत्तूण चरिमसमयतिरिक्खदव्वस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमेण पुवकोडिमेत्तविगलपक्खवेसु वढिदेसु एगो सगलपक्खेवो वड्ढदि । आउअपंधगद्धाए ओवट्टिददिवढगुणहाणीए तप्पाओग्गजोगट्ठाणभागहारे भागे हिदे भागल द्वमेतेसु सयलपक्खेवेसु
शंका- प्रथम निषेककी हानि निमित्त कितने योगस्थान उतारा गया है ?
समाधान-प्रथम निषेकमें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र योगस्थान उतारा गया है।
नारक सम्बन्धी प्रथम गोपुच्छमें सकल प्रक्षेपोंका प्रमाण कहा जाता है। वह इस प्रकार है- आयु बन्धककालले डेढ़ गुणहानिको अपवर्तित कर फिर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थानके भागहारमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र उसमें सकल प्रक्षेप होते हैं।
अब अन्तिम समय सम्बन्धी तिर्यचके द्रव्यको द्वितीय समयवर्ती नारकीके दध्यके सहश करते हैं। वह इस प्रकारसे-नारकीकी प्रथम गोपुच्छासे और तिर्यचकी अन्तिम गोपुच्छासे हीन नारकायुको बांधकर तिर्यच भवके अन्तिम समयमें स्थित, नारक भवके द्वितीय समयमें स्थित, तथा पूर्वोक्त विधिसे नारक भव के प्रथम समयमें स्थित, ये तीनों सदृश हैं । अब चूंकि प्रथम समय सम्बन्धी नारक द्रव्यके ऊपर बढ़ानेपर प्रक्षेप अधिकताके क्रमसे सान्तर स्थान होते हैं, अत एव प्रथम समयवर्ती नारकीको छोड़कर अन्तिम समय सम्बन्धी तिर्यचके द्रव्यके ऊपर एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे पर्वकाटि प्रमाण विकल प्रक्षपाक बढ़नपर एक सकल प्रक्षप बढ़ता हैं। आयबन्धकका अपवर्तित डेड गुणहानिका तत्प्रायोग्य योगस्थानके भागहारमें भाग देने पर जो लब्ध हो
१ कापतो 'जत्तिया' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु 'तथियमेवाणि' इति पाठः।
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