Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 480
________________ ४, २, ४, १८५] वेयणमहाहियारे वैयणदव्वविहाणे चूलिया [४५९ गाहा आगदा । जत्थिच्छसि' त्ति वुत्ते जत्थ जत्थ इच्छसि त्ति वुत्तं होदि । जत्तो आदिफद्दयादिवग्गणादो सेसाणं फद्दयाणमादिवग्गणं णादुं तत्थ 'सहे' सहिदो कायव्वा पढमादिफद्दयस्स आदिवग्गणा । एवं कदे अणंतरमुवरिमं जं फद्दयं तस्स आदिवग्गणा होदि । एदस्स उदाहरणं- बिदियफद्दयस्स आदिवग्गणाए पढमफद्दयस्स आदिवग्गणाए पक्खित्ताए तदियफद्दयस्स आदिवग्गणा होदि |२४|| तत्थ पुणो वि पढमफद्दयआदिवग्गणाए पक्खित्ताए चउत्थफद्दयस्स आदिवग्गणा होदि । एवं णेयव्वं जाव चरिमवग्गणेत्ति । बिदियादिवग्गणा पुण जावदिरूवेहि होदि संगुणिदा। तावदिमफद्दयस्स दु जुम्मस्स स वग्गणा होदि ॥ २२ ॥ बिदियफद्दयस्स आदिवग्गणादो सेससव्वजुम्मफद्दयाणमादिवग्गणाओ जाणावणहेदुमेसा गाहा आगदा । 'बिदियादिवग्गणा' बिदियफद्दयस्स आदिवग्गणा त्ति वुत्तं होदि । 'जावदिरूवेहि होदि संगुणिदा' जेत्तिएहि रूवेहि गुणिदा होदि, तावदिमजुम्मफद्दयस्स वर्गणाके प्ररूपणार्थ यह गाथा आई है। 'जत्थिच्छसि ' ऐसा कहनेपर 'जहां जहां अभीष्ट हो' यह अर्थ होता है । — जत्तो' अर्थात् जिस किसी भी स्पर्धककी प्रथम वर्गणासे शेष स्पर्धकोंकी प्रथम वर्गणाको जाननेके लिये अपनेसे नीचे के स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणासे सहित करना चाहिये [ अभिप्राय यह है कि विवक्षित स्पर्धकसे पूर्व स्पर्धककी प्रथम वर्गणामें प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको मिलाने पर आगेके स्पर्धककी प्रथम वर्गणाका प्रमाण होता है ]। इसका उदाहरण-द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गगामें प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको मिलानेपर तृतीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है (१६ + ८ = २४ ) । उसमें फिरसे भी प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके मिलानेपर चतुर्थ स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है। इस प्रकार अन्तिम वर्गणा तक ले जाना चाहिये । द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको जितने अंकोसे गुणित किया जाता है उतने युग्म स्पर्धककी वह प्रथम वर्गणा होती है ॥ २२ ॥ __. द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणासे शेष सब युग्म स्पर्धककी आदिम वर्गणाओंके ज्ञापनार्थ यह गाथा आई है। 'बिदियादिवग्गणा' का अर्थ द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणा है। 'जावदिरूवेहि होदि संगुणिदा' अर्थात् जितने अंकोंसे वह गुणित की जाती है, तावदिमजुम्मफद्दयस्स' अर्थात् उतनेवे युग्म स्पर्धककी प्रथम वर्गणा १ अ-आ-काप्रतिषु 'अस्थिच्छसि ' इति पाठः। २ प्रतिषु ' सहे, सहिदा' इति पाठः। ३ तातो 'एदस्स उदाहरणं ...... तदियफदयस्स आदिवग्गणा होदि'इस्येतावानयं पाठस्त्रुटितो जातः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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