Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 483
________________ ४६२] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ४, १८५. आदिवग्गणा सा होदि । एवं जाणिदण परूवणा कायन्ना जाव सिस्सो णिरोरेगो जादो ति। विसमगुणादेगूणं दलिदे जुम्मम्मि तत्थ फद्दयाणि'। ते चैव रूवसहिदा ओजे उभओ वि सव्वाणि ॥ २४ ॥ णिरुद्धओजफद्दयादो हेहिमओज-जुम्मफद्दयाणं पमाणपरूवणहमेसा गाहा आगदा। तं जहा-विसमगुणादो ओजफद्दयगुणगारादो त्ति वुत्तं होदि । 'एगणं' एगं अवणिय दलिदे हेट्ठिमजुम्मफद्दयाणि होति । तत्थ रूवे पक्खित्ते ओजफद्दयाणि । दोसु वि मेलाविदेसु सव्वफद्दयपमाणं होदि । एत्थ उदाहरणं-तिणि ठविय | ३ | एगूणं करिय दलिदे जुम्मफद्दयं होदि | १ || पुणो एत्थ रूवे पक्खित्ते ओजफद्दयाणि होति | २ || पुणो दोसु वि एक्कदो कदेसु सव्वफद्दयाणि होति | ३|| पुणो पंच द्रुविय |५| एगूणं करिय दलिदे जुम्मफद्दयाणि होति |२|| पुणो एत्थ एगरूवं पक्खित्ते ओजफद्दयाणि होति |३|| दोसु वि एक्कदो कदेसु सव्वफद्दयाणि होति | ५|। एवमुवरि जाणिदूण णेदव्वं जाव चरिमओजफद्दएत्ति । एवं फद्दयंतरपरूवणा समत्ता । ओज स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है। इस प्रकार जानकर शिष्यके शंका रहित होने तक प्ररूपणा करना चाहिये। विषमगुण अर्थात् ओज स्पर्धकके गुणकारमेंसे एक कम करके आधा करनेपर वहां युग्म स्पर्धकोंका प्रमाण आता है। उनमें ही एक अंकके मिला देनेपर ओज स्पर्धकोंका प्रमाण हो जाता है। उक्त दोनों स्पर्धकोंके प्रमाणको जोड़नेसे समस्त स्पर्धकोंकी संख्या प्राप्त होती है ॥ २४ ॥ विवक्षित ओज स्पर्धकसे पिछले ओज और युग्म स्पर्धकोंके प्रमाणको बतलाने के लिये यह गाथा आई है। यथा- विषमगुणसे अर्थात् ओज स्पर्धकगुणकारमेंसे एकोन अर्थात् एक कम करके आधा करनेपर अधस्तन युग्म स्पर्धकका प्रमाण होता है। उसमें एक अंकके मिलानेपर ओज स्पर्धकोंका प्रमाण होता है। उन दोनों को मिला देनेपर समस्त स्पर्धकोंका प्रमाण होता है । यहां उदाहरण- विवक्षित द्वितीय ओज स्पर्धकके गुणकार रूप तीन (३) संख्याको स्थापित कर उसमेंसे एक कम करके आधा करनेपर युग्म स्पर्धक होता है (३:- १)। फिर इसमें एक अंकको मिलानेपर ओज स्पर्धकोंका प्रमाण होता है (१+१=२)। इन दोनोंको इकट्ठा कर देने पर समस्त स्पर्धकोंका प्रमाण हो जाता है (१+२% ३)। फिर पांच (५) को स्थापित कर उसमेंसे एक कम करके आधा करनेपर युग्म स्पर्धक होते हैं (५.१ = २)। इनमें एक अंकके मिला देनेसे ओज स्पर्धकोंका प्रमाण हो जाता है (२+१=३)। दोनोंको इकट्ठा कर देनेपर समस्त स्पर्धकोंका प्रमाण हो जाता है (२+३=५)। इस प्रकार आगे भी जानकर अन्तिम ओज स्पर्धक तक ले जाना चाहिये । इस प्रकार स्पर्धकोंकी अन्तरप्ररूपणा समाप्त हुई। १ ताप्रती 'महाणि' इति पाठः । २ अप्रतौ — ओजे चओ', आ-का-ताप्रतिषु ' उचओ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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