Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 470
________________ ४, २, ४, १८१.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [ ४४९ fe जीवपदेसा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? णाणागुणहाणि सलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोष्णन्भत्थरासी पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो [वा ] गुणगारो । अपढम - अचरिमासु वग्गणासु जीवपदेसा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? किंचूणदिवड्ढगुणहाणीओ गुणगारो सेडीए असंखेज्जदिभागो वा । अपढमासु वग्गणासु जीवपदेसा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तण ? चरिमवग्गणाए ऊणपढमवग्गणमेत्तेण । सव्वासु वग्गणासु जीवपदेसा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? चरिमवग्गणमेत्तेण । अप्पा बहुगपरूवणा गदा । एवमसंखेज्जपदरमेत्तजीवपदेसे घेत्तूण एगा जोगवग्गणा होदि त्ति सिद्धं । एवं साधिदएगेगवग्गणाजीवपदेसेसु असंखेज्जलो गमेत्तेहि अप्पप्पणो जोगाविभागपडिच्छेदे हि गुणिदेसु एगेगवग्गणजोगाविभागपडिच्छेदा होंति । पढमवग्गणाए अविभागपडि च्छेदेहिंतो बिदियवग्गणअविभागपडिच्छेदा विसेसहीणा । केत्तियमेत्तेण ? पढमवग्गणाएगजीवपदेसाविभागपडिच्छेदे णिसेगविसेसेण गुणिय पुणो तत्थ विदियगोवुच्छाए अवणिदाए जं सेसं तेत्तियमेत्तेण । बिदियवग्गणाविभागपडिच्छेहिंतो तदियवग्गणअविभागपाडच्छेदा विसेसहीणा । प्रथम वर्गणा के जीवप्रदेश असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? नाना गुणहानिशलाकाओंका विरलन कर द्विगुणा करके परस्पर गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उतना गुणकार है, अथवा पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उनसे अप्रथम व अचरम वर्गणाओं में जीवप्रदेश असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? गुणकार कुछ कम डेढ़ गुणहानियां अथवा श्रेणिका असंख्यातवां भाग है । उनसे अप्रथम वर्गणाओं में जीवप्रदेश विशेष अधिक हैं । कितने मात्र विशेषसे वे अधिक हैं ? चरम वर्गणासे हीन प्रथम वर्गणा मात्र से वे अधिक हैं। उनसे सब वर्गणाओं में जीवप्रदेश विशेष अधिक हैं। कितने मात्र विशेषसे वे अधिक हैं ? चरम वर्गणा मात्र से वे अधिक हैं अल्पबहुत्वप्ररूपणा समाप्त हुई । इस प्रकार असंख्यात प्रतर मात्र जीवप्रदेशोंको ग्रहण कर एक योगवर्गणा होती है, यह सिद्ध हो गया । इस प्रकार सिद्ध किये गये एक एक वर्गणाके जीवप्रदेशोंको असंख्यात लोक प्रमाण अपने योगाविभागप्रतिच्छेदोंसे गुणित करनेपर एक एक वर्गणाके योगाविभागप्रतिच्छेद होते हैं । प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे द्वितीय वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद विशेष हीन हैं । कितने मात्र विशेषसे वे हीन हैं ? प्रथम वर्गणा सम्बन्धी एक जीवप्रदेशके अविभागप्रतिच्छेदोंको निषेकविशेषसे गुणित कर फिर उसमेंसे द्वितीय गोपुच्छको कम करनेपर जो शेष रहे उतने मात्र से वे विशेष अधिक हैं । द्वितीय वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे तृतीय वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद ७. वे. ५७. Jain Education International For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org

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