Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ४, १७७.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया
[४३९ वग्गणपरूवणा किमटुं परूविदा ? ण एस दोसो, अणवगयासु वग्गणासु फद्दयपरूवणाणुववत्तीदो । फद्दएसु अणवगएसु अंतरपरूवणादीणमुवायाभावादो सेसाणियोगद्दारेसु फद्दयपरूवणा पुव्वं चेव कदा । फद्दयबहुत्तणिबंधणअंतरे अणवार बहुफद्दयाहिविदट्ठाणादीणं परूवणोवायाभावादो सेसाणिओगद्दारेहितो पुवमेव अंतरपरूवणा कदा । ठाणेसु अणवगएसु अणंतरोवाणधादीणमवगमोवायाभावादो पुवं ढाणपरूवणा कदा । अणंतरोवणिधाए अणव. गराए परंपरोवणिधावगंतु ण सक्किज्जदि त्ति पुवमणंतरोवणिधा परूविदा । परंपरोवणिधाए अणवगदाए समय-वड्डि-अप्पाबहुगाणमवगमोवायाभावादो परंपरोवणिधा परूविदा । समएम अणवगएसु उवरिमअहियाराणमुत्थाणाभावादो समयपरूवणा पुव्वं परूविदा । वड्डिपरूवणाए अणवगयाए तत्थावट्ठाणकालावगमोवायाभावादो अप्पाबहुवादो पुव्वं वड्डिपरूवणा कदा। एवं परूविदाणं सव्वेसिं थोवबहुत्तजाणावणहमपाबहुगपरूवणा कदा।
अविभागपडिच्छेदपरूवणाए एक्क म्हि जीवपदेसे केवडिया जोगाविभागपडिच्छेदा ? ॥ १७७ ॥
शंका- उसके पश्चात् वर्गणाप्ररूपणाकी प्ररूपणा किसलिये की गई है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, वर्गणाओंके अज्ञात होनेपर स्पर्द्धकों. की प्ररूपणा नहीं बन सकती।
___ स्पर्द्धकोंके अज्ञात होनेपर अन्तरप्ररूपणा आदिकोंके जाननेका कोई उपाय न होनेसे शेष अनुयोगद्वारोंमें स्पर्द्धकप्ररूपणा पहिले ही को गई है। स्पर्द्धकबहुत्वके कारणभूत अन्तरके अज्ञात होनेपर बहुत स्पर्द्ध कोंसे अधिष्ठित स्थान आदि अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणाका कोई उपाय न होनेसे शेष अनुयोगद्वारोंसे पहिले ही अन्तरप्ररूपणा की गई है। स्थानोंके अज्ञात होनेपर अनन्तरोपनिधा आदिकोंके जाननेका कोई उपाय न होनेसे पहिले स्थानप्ररूपणा की गई है। अनन्तरोपनिधाके अज्ञात होनेपर परम्परोपनिधाका जानना शक्य नहीं है, अतः उससे पहिले अनन्तरोपनिधाकी प्ररूपणा की गई है। परम्परोपनिधाके अज्ञात होनेपर समय, वृद्धि और अल्पबहुत्वके जाननेका कोई उपाय न होनेसे परम्परोपनिधाकी प्ररूपणा की गई है। समयोंके अज्ञात होनेपर आगेके अधिकारोंका उत्थान नहीं बनता, अतएव पहिले समयप्ररूपणा कही गई है। वृद्धिप्ररूपणाके अज्ञात होनेपर वहां अवस्थानकालके जाननेका कोई उपाय नहीं है, अतः अल्पवहुत्वसे पहिले वृद्धिप्ररूपणा की गई है। इस क्रमसे प्ररूपित सब अधिकारोंके अल्पबहुत्वको जतलाने के लिये अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है।
अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणाके अनुसार एक एक जीवप्रदेशमें कितने योगाविभागप्रतिच्छेद होते हैं १॥१७७॥
प्रतिषु · अंतरोवणिधादीण-' इति पाठः । २ अ-आ-काप्रतिषु 'पदेस' इति पाठः।
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