Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 463
________________ ११२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १८०.. जोगाविभागपडिच्छेदा एक्केक्कम्हि जोगट्ठाणे हवंति । अणुभागट्ठाणं व अणतेहि अविभागपडिच्छेदेहि जोगट्ठाणं ण होदि, किंतु असंखेज्जेहि जोगाविभागपडिच्छेदेहि होति त्ति जाणावियं' । समत्ता अविभागपडिच्छेदपरूवणा । वग्गणपरूवणदाए असंखेज्जलोगजोगाविभागपडिच्छेदाणमेया वग्गणा भवदि ॥ १८० ॥) किमट्ठमेसा वग्गणपरूवणा आगदा ? किं सव्वे जीवपदेसा जोगाविभागपडिच्छेदेहि सरिसा आहों विसरिसा त्ति पुच्छिदे सरिसा अस्थि विसरिसा वि अस्थि त्ति जाणावणटुं वग्गणपरूवणा आगदा । असंखेज्जलोगमेत्तजोगाविभागपडिच्छेदाणमेया वग्गणा होदि त्ति भणिदे जोगाविभागपडिच्छेदेहि सरिसधणियसव्वजीवपदेसाणं जोगाविभागपडिच्छेदासंभवादो असंखेज्जलोगमेत्ताविभागपडिच्छेदपमाणों एया वग्गणा होदि त्ति घेतव्वं । एवं सव्ववग्गणाणं असंख्यात लोकोंसे गुणित करनेपर इतने मात्र योगाविभागप्रतिच्छेद एक एक योगस्थानमें होते हैं । अनुभागस्थानके समान योगस्थान अनन्त अविभागप्रतिच्छे दोंसे नहीं होता, किन्तु वह असंख्यात योगाविभागप्रतिच्छे दोंसे होता है। यह जतलाया गया है। अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा समाप्त हुई है। वर्गणाप्ररूपणाके अनुसार असंख्यात लोक मात्र योगाविभागप्रतिच्छेदोंकी एक वर्गणा होती है ॥ १८० ॥ शंका - वर्गणाप्ररूपणाका अवतार किसलिये हुआ है ? समाधान- क्या सब जीवप्रदेश योगाविभागप्रतिच्छदोंकी अपेक्षा सदृश हैं या विसदृश हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तरमं वे सदृश भी हैं और विसदृश भी हैं ' इस बातके झापनार्थ वर्गणाप्ररूपणाका अवतार हुआ है। असंख्यात लोक मात्र योगाविभागप्रतिच्छेदोंकी एक वर्गणा होती है, ऐसा कहनेपर योगाविभागप्रतिच्छेदों की अपेक्षा समान धनवाले सब जीवप्रदेशोंके योगाविभागप्रतिच्छेद असम्भव होनेसे असंख्यात लोक मात्र अविभागप्रतिच्छेदोके बराबर एक वर्गणा होती है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । इसी प्रकार सब वर्गणाओंमें प्रत्येक ... १ अ-आ-काप्रतिषु · जाणाविय ' इति पाठः । २ जेसिं पएसाण समा अविभागा सव्वतो य थोवतमा । ते वग्गणा जहन्ना अविभागहिया परंपरओ॥ क. प्र. १, ७. ३ अ-आ काप्रतिषु 'पडि छेदापमाणो' इति पाठः । ...येषां जीवप्रदेशाना समास्तुल्यसंख्या वीर्याविभागा भवन्ति, सर्वतश्च सर्वेभ्योऽपि चान्येभ्योऽपि जीवप्रदेशगतवीर्याविभागेभ्यः स्तोकतमाः, ते जीवप्रदेशा घनीकृतलोकासंख्येयभागवयंसंखेयप्रतरगतप्रदेशराशिप्रमाणाः समुदिता एका वर्गणा । क. प्र. (मलय.)1. ७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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