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१४४ छक्खंडागमे वैयणाखंडं
४, २, ४, १८१. ण च सव्ववग्गणाणं दीहत्तं समाणं, आदिवग्गणप्पहुडि विसेसहीणसरूवेण अवठ्ठाणादो । कधमेदं णव्वदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो। एत्थ गुरूवदेसबलेण छहि अणियोगद्दारेहि वग्गणजीवपदेसाणं परूवणा कीरदे । तं जहा- परूवणा पमाणं सेडी अवहारो भागाभागो अप्पाबहुगं चेदि छअणिओगद्दाराणि । तत्थ परूवणा - पढमाए वग्गणाए अस्थि जीवपदेसा । विदियाए वग्गणाए अस्थि जीवपदेसा। एवं णेदव्वं जाव चरिमवग्गणेत्ति । परूवणा गदा ।
पमाणं वुच्चदे- पढमाए वग्गणाए जीवपदेसा असंखेज्जपदरमेत्ता । बिदियाए वग्गणाए जीवपदेसा असंखेज्जपदरमेत्ता । एवं णेयव्वं जाव चरिमवग्गणेत्ति । पमाण
परूवणा गदा ।
सेडिपरूवणा दुविहा अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा चेदि । तत्थ अणंतरोवणिधा उच्चदे । तं जहा-पढमाए वग्गणाए जीवपदेसा बहुवा । बिदियाए वग्गणाए जीवपदेसा विसेसहीणा । को विसेसो ? दोगुणहाणीहि सेडीहि असंखेज्जदिभागमेत्ताहि पढमवग्गणाजीवपदेसेसु खंडिदेसु तत्थ एगखंडमेतो। एवं विसेसहीणा होदूण सव्ववग्गणजीवपदेसा
समान नहीं है, क्योंकि, प्रथम वर्गणाको आदि लेकर आगेकी वर्गणायें विशेष हीन स्वरूपसे अवस्थित हैं।
शंका- यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- वह आचार्यपरम्परागत उपदेशसे जाना जाता है।
यहां गुरुके उपदेशके बलसे छह अनुयोगद्वारोंसे वर्गणा सम्बन्धी जीवप्रदेशोंकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-- प्ररूपणा, प्रमाण, श्रेणि, अवहार, भागाभाग और अल्पबहुत्व, ये छह अनुयोगद्वार हैं। उनमें प्ररूपणा- प्रथम वर्गणामें जीवप्रदेश हैं, द्वितीय वर्गणामें जीवप्रदेश हैं, इस प्रकार अन्तिम वर्गणा तक ले जाना चाहिये । प्ररूपणा समाप्त हुई।
प्रमाणका कथन करते हैं-प्रथम वर्गणामें जीवप्रदेश असंख्यात प्रतर मात्र हैं। नितीय वर्गणामें जीवप्रदेश असंख्यात प्रतर मात्र हैं। इस प्रकार अन्तिम वर्गणा तक ले जाना चाहिये । प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई।
श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकार है- अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा। उनमें अनन्तरोपनिधाका कथन करते हैं-प्रथम वर्गणामें जीवप्रदेश बहत है। उससे द्वितीय वर्गणामें जीवप्रदेश विशेष हीन हैं। विशेषका प्रमाण कितना है ? श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र दो गुणहानियों द्वारा प्रथम वर्गणा सम्बन्धी जीवप्रदेशीको खण्डित करनेपर उनमेंसे वह एक खण्ड प्रमाण है। इस प्रकार अन्तिम वर्गणा तक सब वर्गणाभोंके जीवप्रदेश विशेष हीन होकर जाते हैं। विशेषता इतनी है कि एक एक
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