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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १२७ खंडपमाणं होदि । कुदो ? साभावियादो। एगसमयपबद्धादो आउअसरूवेण थोवदव्वं परिणमदि । तमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थेगखंडेण अहियं होदूण णामागोदसरूवेण परिणमदि । णामदव्वमावलियाए असंखेज्जदिमागेण खंडिदे तत्थेगखंडेण [अहियं होदूण णाणावरण-दंसणावरण-अंतराइयाणं सरूवेण परिणमदि । णाणावरणभागमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खडिदे तत्थेगखंडेण ] तत्तो अहियं होदूण मोहणीयसरूवेण परिणमदि । मोहभागमावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थेगखंडेण तत्तो अहियं होदण वेयणीयसरूवेण परिणमदि त्ति एस सहाओ। तदो आवलियाए असंखेज्जदिभागेण णामदव्वसंचए खंडिदे तत्थेगखंडेण तत्तो अहियं तिण्हं घादिकम्माणं जहण्णदव्वं होदि । सजोगिगुणभेडीए णामा-गोददव्वाण' जा णिज्जरा देसूणपुवकोडिं जादा सा अप्पहाणा, णामा-गोददव्वं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण खंडिदे तत्थ एगखंडस्सेव गुणसेडिणिज्जराए णत्तादो।
मोहणीयवेयणा दव्वदो जहणिया विसेसाहिया ॥ १२७॥
समयप्रबद्धसे आयु स्वरूपले स्तोक द्रव्य परिणमता है। उसको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमें एक खण्डसे अधिक होकर वह नाम-गोत्र स्वरूपसे परिणमता है। नामकर्म के द्रव्यको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमें एक खण्डसे [ अधिक होकर वह ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय स्वरूपसे परिणमता है। ज्ञानावरणके भागको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करने पर उसमें एक खण्डसे ] अधिक होकर मोहनीय स्वरूपले परिणमता है । मोहनीयके भागको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमें एक खण्डसे आधिक होकर वेदनीय स्वरूपसे परिणप्रता है। यह इस प्रकारका स्वभाव है। इसलिये नामकर्म सम्बन्धी द्रव्यके संचयको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करने पर उसमें एक खण्डसे अधिक उक्त द्रव्य तीन घातिया कर्मोका जघन्य द्रव्य होता है । सयोगी जिनके गुणश्रेणि द्वारा जो नाम गोत्र सम्बन्धी द्रव्यकी कुछ कम पूर्वकोटि तक निर्जरा हुई है वह गौण हैं, क्योंकि, नाम व गोत्र कर्मके द्रव्यको पल्योपमके असंख्यातव" भगासे खण्डित करनेपर उसमें से एक खण्ड ही गुणश्रेणि द्वारा नष्ट हुआ है।
द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य मोहनीयकी वेदना उक्त तीन धातिया कर्मोकी वेदनासे विशेष अधिक है ॥ १२७ ॥
१ कोष्ठकस्थोऽयं पाठो नोपलभ्यते तापतौ। २ ताप्रती । णामागोदाणं दव्वाणं ' इलि पाठः । १ ताप्रतौ ' पुवकोडी ' इति पाठः ।
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