Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 451
________________ ४३.] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १७३. उक्कस्सएगताणुवड्डिजोगा। सो कस्स ? अंतोमुहुत्तुववण्णस्स से काले आउअं बंधिहिदि त्ति ट्टिदस्स । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । ०००००००० ००००० ००००० ०००००००००० ०००००० ०० ०००० ०००००००००० ०००००००००० अंतरं ००० ०००००००० ०००००००००० ००००००००० ००००० ००००० ०००००००००० ०००००००० ००० ००० ०००० अतर एदेसिं छण्णं पि अंतराणं पमाणं सेडीए असंखेज्जविभागो। कुदो ? एगवारण सेडीए असंखेज्जदिभागमेत जोगपक्खेवप्पवेसादो । तं पि कुदो णव्वदे ? हेट्ठिगजोगट्ठाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदे उवरिमजोगट्ठाणुप्पत्तीदो। बेइंदियादिसण्णि त्ति लद्धिअपज्जत्ताणं जहाकमेण एदे जहण्णपरिणामजोगा । सो कस्स १ सगभवहिदीए तदियतिभागे वट्टमाणस्स । तदुवरि तेसिं चेव उक्कस्सपरिणामजोगा । वह किसके होता है ? वह उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्त पश्चात् अनन्तर समयमें आयुको बांधनेके अभिमुख हुए जीवके होता है। वह कितने काल होता है। वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है। इन छहों अन्तरालोंका (संदृष्टि मूल में देखिये) प्रमाण श्रेणिका असंख्थातवां भाग है, क्योंकि, एक चारमें श्रोणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगप्रक्षेपोंका प्रवेश है। शंका- वह भी कहांसे जाना जाता है ? समाधान-चूंकि अधस्तन योगस्थानको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित करनेपर उपरिम योगस्थान उत्पन्न होता है, अतः इसी हेतुसे वह जाना जाता है। द्वीन्द्रियको आदि लेकर संशी तक लब्ध्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे ये जघन्य परिणामयोग हैं । वह किसके होता है ? वह अपनी भवस्थिति के तृतीय भागमें वर्तमान जीवके होता है । उसके आगे उन्हींके उत्कृष्ट परिणामयोग हैं । वे किसके होते हैं वे 1 अप्रतौ 'जोगहाशववचीको ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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