________________
५८.]
छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, १, १२२. सो जोगो किंविधो' त्ति भणिदे एगो तिरिक्खाउअं जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि बंधिय कदलीघादं कादूण समऊणुक्कस्सबंधगद्धाए जहण्णजोगेण णिरयाउअं बंधिय पुणो एगसमयं जत्तियमेत्ताणि जोगट्ठाणाणि चडि, सक्कदि तत्तियमेत्ताणं जोगट्ठाणाणं चरिमोगट्ठाणमत्तं गहिदं । एवं उक्कस्सबंधगद्धाए एगो समओ तप्पाओग्गमसंखेज्जगुणं जोगं पत्तो । जहा एसो एगसमओं तप्पाओग्गमसंखेज्जगुणं जोगं णीदो एवं सेसेगेगसमया वि तप्पाओग्गमसंखेज्जगुणजोगस्स णेदव्वा जावुक्कस्सणिरयाउअबंधगद्धाए सव्वे समया तप्पाओग्गमसंखेज्जगुणं जोगट्ठाणं पता त्ति। एवमणेण विहिणा संखेज्जवारमुक्कस्संबंधगद्धा उरि उवरि चढाविय णीदे उक्कस्सोगं पावदि ।
एवं णीदे एत्थ चरिमवियप्पो वुच्चदे । तं जहा-- जलचरेसु जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि तिरिक्खाउअं बंधिय कदलीघादं कादण उक्कस्सजोग-उक्कस्सबंधगद्धाहि णिरयाउअं बंधाविदे चरिमवियप्पो होदि । एवं तिरिक्खजलचरआउअदव्यमस्सिदण गिर
शंका-वह योग किस प्रकारका है ?
समाधान- ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि एक जीव जघन्य योग और जघन्य बन्धककाल से तिर्यंच आयुको बांधकर कदलीघात करके एक समय कम उत्कृष्ट बन्धककालमें जघन्य योगसे नारकायुको बांधकर फिर एक समयमें जितने मात्र योगस्थान चढ़ सकता है उतने मात्र योगस्थानों सम्बन्धी अन्तिम योगस्थान मात्र यहां ग्रहण किया गया है।
इस प्रकार उत्कृष्ट बन्धककालका एक समय तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणे योगको प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार यह एक समय तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणित योगको प्राप्त कराया गया है इसी प्रकार शेष एक एक समयों को भी तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणे योगको प्राप्त कराना चाहिये जब तक कि उत्कृष्ट नारकाय सम्बन्धी बन्धककाल के सब समय तत्प्रायोग्य असंख्यातगुणे योगस्थानको प्राप्त नहीं हो जाते । इस प्रकार इस विधिसे संख्यात वार ऊपर ऊपर चढ़ाकर ले जानेपर उत्कृष्ट बन्धककाल उत्कृष्ट योगको प्राप्त होता है।
__इस प्रकार ले जानेपर यहां अन्तिम विकल्प कहा जाता है। वह इस प्रकार है- जलचरोंमें जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे तिर्य व आयुको मांधकर कदलीघात करके उत्कृष्ट योग और उत्कृष्ट बन्धककालसे नारकायुको बंधानेपर अन्तिम विकल्प होता है। इस प्रकार तिर्यच जलचरके आयु द्रव्यका आश्रय कर
१ प्रतिषु किंविद्धो ' इति पाठः। २ अ-आप्रत्योः एसो समओ', का-तापत्योः एसो ससमो' इति पाठः। ३ मप्रतिपाठोऽपम् | अपतौ ‘से पेगेर । ', आषतौ से से एग', कापतौ ' से सेएगेग', तापतौ · सेसेगे [ए] ग' इति पाठः। ४ अ-आप्रत्योः ‘वियपा' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org