Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ४, ३२.1 वेयणमहाहियारे वेयणदध्वविहाणे सामित्त
[१७ साधेदव्यो। विदियसमयपबद्धसंचयस्स भागहारसंदिट्ठी | ६३०० ।
१९ । संपधि तिण्णिसमए उवरि चडिय बद्धसमयपबद्धसंचयस्स भागहारे आणिज्जमाणे चरिमणिसगभागहीरतिभागं विरलिय समयपबद्धं समखंड करिय दिपणे एवं पडि तिषिणतिण्णि चरिमणिसेगा पाति । पुणो हेवा दुगुणरूवाहियगुणहाणिं रूवूणचडिदद्धाणेण खंडिदं विरलिय उवरिमएगरूवधरिदं समखंडं करिय दिप्णे रूवं पडि रूवूणचडिदद्धाणसंकलणमेत्तगोवुच्छविसेमा पार्वति । तेसु उवरिमविरलणरूवधरिदतिसु चरिमणिसेगसु पक्खित्तेसु इच्छिदसंचओ होदि, रूवाहियटिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण एगरूवपरिहाणी च लन्भदि । एवं समकरणे कदे परिहाणिरूवाणं पमाणमुच्चदे--- रूवाहियहेट्ठिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उवरिमविरलणम्मि किं लभामो त्ति फलगुणिदिच्छाए पमाणेणोवट्टिदाए परिहाणिरूवाणि लभंति । पुव्वं व एदाणि चदुहि पयारेहि आणिय उवरिमविरलणाए अवणिदेसु इच्छिदसंचयभागहारो होदि । ६३०० | । एदेण समयपबद्धे भागे
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उदाहरण- अन्तिम निषेकभागहार ७००, गुणहानि ८, चडित अध्वान २; ८+ १ = ९, ७००४९ = ६३००। ८+१- ९९४२ - १८; १८ + १ = १९ ६३०० * १९ = ६३०० इच्छित भागहार
इस तरह चार प्रकारसे एक समयप्रबद्धके संचयका भागहार सिद्ध करना चाहिये। द्वितीय समयप्रबद्ध के संचयके भागहारकी संदृष्टि- ६३००।
अब तीन समय आगे जाकर बांधे समयप्रबद्ध के संचयके भागहारको लाते समय अन्तिम निषेकके भागहारके त्रिभागका विरलन करके समयबद्ध को समखण्ड करके देनेपर विरलनके प्रत्येक एकके प्रति तीन तीन अन्तिम निषक प्राप्त होते हैं। पश्चात् उसके नीचे आगेके जितने स्थान विवक्षित हों, एक कम उनसे भाजित एक अधिक गुणहानिके दुनेका विरलन करके उपरिम विरलनके प्रत्येक एकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक एकके प्रति एक कम आगेके जितने स्थान विवक्षित हों उनके संकलन मात्र गोपुच्छविशेष प्राप्त होते हैं। उनको उपरिम विरलनपर धरे हुए तीन अन्तिम निषेकों में मिलाने पर इच्छित संचयका प्रमाण होता है, तथा एक अधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान जाकर एक अंककी हानि भी पायी जाती है। इस प्रकार समीकरण करनेपर कम हुए अंकका प्रमाण कहते हैं- एक अधिक अधस्तन विरलन मात्र स्थान आकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलनमें कितने अंकोंकी हानि पायी जावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करने पर परिहीन अंक प्राप्त होते हैं। पूर्वके समान इनको उक्त चारों प्रकारोले लाकर उपरिम विरलनमैसे घटा देने पर इच्छित संचयका भागहार होता है- ६३०० । इसका समयप्रषद्ध में
१ अ-काप्रत्योः ‘भागहारं विलिय ' सप्रती 'भागहारविभागं विरलिय' इति पाठः ।
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