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छागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, ३६.
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बहुवणिज्जरपसंगादो । जलचरेसु चेव किम बंधाविदो ? ण एस दोसो, जलचरेसु विवेगाभावादो संकिलेसवज्जिएस सादबहुलेसु ओलंत्रणाकरणेण विणासिज्ज्माणदव्वस्स बहुत्ताभावादो । समयाद्दियपुव्वको डिआदि उवरिमआउअवियप्पाणं कदलीघादो णत्थि, डिमाणं चैव अस्थि त्ति कथं गव्वदे ? समयाहियपुव्व कोडिआदि उवरि में आउआणि असंखेज्जवाणित्ति अतिदेसादो । ण च कारणेण विणा अतिदेसो कीरदे, अणवत्थापसंगादो । - दीहार आउवबंधगद्धाए त्ति तदियं विसेसणं । पुव्वकोडितिभागमा बाधं कादूण आउवं बंधमाणाणं बद्धमाणाऊ जहण्णा उक्कस्सा वि अस्थि । तत्थ जद्दण्णबंधगद्धाणिरा - करणट्ठमुक्कस्सियाए बंधगद्धाए त्ति भणिदं । उक्कस्सबंधगद्धा वि पढमागरिसाए चैत्र होदि, ण अण्णत्थ । कुद्दो एदं णव्वदे ? महाबंधसुता । तं जहा अहि आगरिसाहि आउअं बंधमाणस्स सव्वत्थोवा अट्ठमीए आगरिसाए आउवबंधगद्धा जहणिया | सा
बहुत द्रव्यकी निर्जरा प्राप्त होती है । यही कारण है कि यहां पूर्वकोटिसे नीचे की आयुके स्थितिविकल्पोंका बन्ध नहीं कराया ।
जलचरोंमें ही आयु किसलिये बंधाई ?
शंका
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, जलचर जीव विवेकहीन होने से सक्लेश रहित और सातबहुल होते हैं । इसलिये उनके अवलम्बन करणके द्वारा नष्ट होनेवाला द्रव्य बहुत नहीं पाया जाता ।
शंका - एक समय अधिक पूर्वकोटि आदि रूप आगे
आयुविकल्पोंका कदलीघात नहीं होता, किन्तु पूर्वकोटिसे नीचे के विकल्पोंका ही होता है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान - एक समय अधिक पूर्वकोटि आदि रूप आगे की सब आयु असंख्यात वर्ष प्रमाण मानी जाती है, ऐसा अतिदेश है; इससे जाना जाता है । और कारणके विना भतिदेश किया नहीं जाता, क्योंकि, कारणके विना अतिदेश करनेपर अनवस्था दोष भाता है ।
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'दीर्घ आयुबन्धककालमें ' यह तृतीय विशेषण है । पूर्वकोटिके तृतीय भागको आबाधा करके आयुको बांधनेवाले जीवोंकी बध्यमान आयु जघन्य भी होती है और उत्कृष्ट भी होती है । उसमें जघन्य बन्धककालका निराकरण करनेके लिये 'उत्कृष्ट बन्धककालमें ' यह कहा है । उत्कृष्ट बन्धककाल भी प्रथम अपकर्ष में ही होता है, अन्यत्र नहीं होता ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान – यह महाबन्धसूत्र से जाना जाता है । यथा - आठ अपकर्षो द्वारा भायुको बांधनेवाले जीवके आठवें अपकर्ष में जघन्य आयुबन्धककाल सबसे स्तोक है ।
१ अ-आ-काप्रतिषु · - करणं विणासिज्जमान, ताप्रतौ ' करणं, विणासिज्माण मप्रतौ ' करणं ण बिणासिज्जमाण' इति पाठः । २ प्रतिषु 'कोडिआउउवरिम' इति पाठः । ३ अ-आ-काप्रतिषु 'अतिदेसा' इति पाठ: ।
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