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२२६) छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, ३६. काणि ताणि लक्खणाणि ? पुव्वकोडाउओ त्ति एगं लक्खणं । पुव्वकोडाउअं मोत्तूण अण्णो किण्ण घेप्पदे ? ण, पुवकोडितिभागमाबाई काऊण परभविआउअंबंधमाणाणं चेव उक्कस्सबंधगद्धाए संभवादो । पढमागरिसा सव्वत्थ सरिसा किण्ण होदि १ ण एस दोसो, साभावियादो। ण च सहावो परपज्जणिजोगारहो, विरोहादो । पुवकोडितिभागमाबाहं काऊण बद्धाउअस्स आबाहकालम्मि ओलंबणकरणेण थूलत्तमावण्णपढमादिगोउच्छस्स जलचरेसु उप्पण्णपढमसमयप्पहुडि बहुदव्वणिज्जादंसणादो ण पुवकोडितिभागे आउवं बंधाविज्जदि, किंतु असंखेयद्धम्मि पढमागरिसाए आउवं बंधाविज्जदि त्ति ? ण, उवरिमपढमागरिसकालादो पुवकोडितिभागपढमागरिसकालस्स विसेसाहियत्तादो । कधमेदं णव्वदे ? सुत्तारंभण्णहाणुववत्तीदो । पुवकोडितिभागम्मि ओलंबणकरणेण विणासिज्जमाणदव्वं पुण एगपढमणिसेगस्स असंखज्जदिभागो। ण च एदस्स रक्खणढे असंखेयद्धम्मि आउअं
द्रव्यका स्वामी होता है। वे लक्षण कौनसे हैं ? पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाला हो, यह एक लक्षण है।
शंका- पूर्वकोटि प्रमाण आयुवालेको छोड़कर अन्यका ग्रहण क्यों नहीं करते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, पूर्वकोटिके त्रिभागको आबाधा करके परभव सम्बन्धी आयुको बांधनेवाले जीवोंके ही उत्कृष्ट बन्धककाल सम्भव है।
शंका - प्रथम अपकर्ष सब जगह समान क्यों नहीं होता ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । और स्वभाव दूसरोंके प्रश्नके योग्य नहीं होता, क्योंकि, ऐसा होने में विरोध आता है।
शंका-जिसने पूर्वकोटिके त्रिभाग प्रमाण आबाधा की है और जो आवाधाकालके भीतर प्रथमादि गोपुच्छेको स्थूल कर चुका है ऐसे बद्धायुष्क जीवके मरकर जलचरोंमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे लेकर अवलम्बन करणके द्वारा बहुत द्रव्यकी निर्जरा देखी जाती है, इसलिये पूर्वकोटिके त्रिभागमें आयुका बंधाना ठीक नहीं है, किन्तु असंक्षेपाद्धाकाल के प्रथम अपकर्षमें आयुका बंधाया जाना ठीक है?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उपरिम प्रथम अपकर्षकालसे पूर्वकोटित्रिभागका प्रथम अपकर्षकाल विशेष अधिक है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- इस सूत्रके रचनेकी अन्यथा आवश्यकता नहीं थी, इसीसे जाना जाता है।
पूर्वकोटित्रिभागमें अवलम्बन करणके द्वारा नष्ट किया जानेवाला द्रव्य एक प्रथम निषकके असंख्यातवें भाग है। याद कहा जाय कि इसके रक्षणके लिये असंक्षेपाखामें आयुको वंधाना योग्य ही है सो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि, पूर्वकोटिके
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