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सखंडागमे येयणाखंड
बसो बहुसो जहण्णाणि जोगट्टाणाणि गच्छदि ॥ ५४ ॥
गोद देसु जहमालि उस्कस्साणि च जोगहाणाणि अस्थि । तरथ पाएण एमयाविरोईण जहण्णजोगमा पेय परिणमिव बादि । तेसिमसंभव सइ उक्कस्सजोगट्ठाणं पे गच्छदि । रु पच्चरे ? • महुसे, ' इदि णिवेनादो । किमढे जहण्णजोगण व
वारियो । थोककम्मपदेसाममणटुं । थोवनोगेण कम्मागमत्थोवत्तं कध णस्वदे ? दवपिहाणे जोगाणपरूवणण्णाहःशुवतीदो। चासंबद्धं भूदबलिभडारओ परुवेदि, महाकम्मपयडिपाहुड
और हमारा अर्थ निषेकरचनाकी मुख्यतासे । दोनोंका फलितार्थ एक ही है । प्रथम मर्थका भाष यह है कि सपित-गुणित-घोलमानके झानावरण कर्मका जितना अपकर्षण होता है उससे इस क्षपितकांशिकके होनवाला ज्ञानावरण कर्म का अपकर्षण बहुत होता है। यह दुई भपकर्वणी बात, किन्तु उत्कर्षण इससे विपरीत होता है। इससे इस भपित. कांशिक जीवके जमीनर्जरा अधिक होती जाती है और संचित द्रव्य उत्तरोत्तर कम रहता जाता है! भाग बन्ध और सपकर्षण के द्वारा जो निषेकरचनाका दूसरा प्रकार लिखा है उससे भी यही अर्थ फलित होता है। इसलिये इस कथन में मात्र विवक्षाभद है, भर्थभेद नही पेला यहां समझना चाहिये।
बहुत बहुत बार जघन्य योगस्थानोंको प्राप्त होता है ॥ ५४॥
सूक्ष्म निगोदजीबों में जघन्य भौर उस्का दोनों प्रकारके योगस्थान हैं। उनले प्रायः भागममें जो विधि बतलाई है उसके अनुसार जघन्य पोगस्थानों में ही रहकर शानावरण कर्म बांधता है । उनकी सम्भावना न होने पर एक बार उसका योगस्थानको भी प्राप्त होता है।
शंका- यह बात किस प्रमाणसे जानी जाती है? समाधान--सूत्रमें निर्दिछ 'बहुसो' पदसे जानी जाती है। शंका- जघन्य योगले ही शानावरण कर्मको किसलिये बंधाया गया है!
समाधान-- स्तोक कर्ष प्रदेशों के आनेके लिये जघन्य योगसे जानाधरण कर्मको बंधाया गया है।
शंका-- स्तोक योगसे थोड़े कर्म आते हैं, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है?
समाधान-.- दाविधानमें योगस्थ नौकी प्ररूपणा अन्यथा बन नहीं एकता, दमले उना जाता कि स्तोक योगसे थोड़े कर्म आते हैं। यदि कहा आप कि भूतबलि सहारक भसम्बद्ध अर्थकी प्ररूपणा करते हैं, सो यह बात भी नही
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अवापत्योः परिणामिय'कारती पारिणामिय'ति पाठ।।
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