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४, २, ४, १२२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [३६५ विगलपक्खेवेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लद्धगेत्ता सगल. पक्खेवा तिरिक्खचरिमगोवुच्छाए होति ।
___ संपहि जोगट्ठाणद्धाणगवेसणा कीरदे । तं जहा- रूवूणदिवड्वगुणहाणिमेत्तसयलपक्खेवाणं जदि दिवड्डगुणहाणिमेतजोगट्ठाणद्धाणं लब्भदि तो सेडीए असंखेज्जदिमागगेत्तसयलपक्खेवेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए जोगट्ठाणद्धाणं लब्भदि । पुणो एत्तियोत्तजोगट्ठाण द्वाणस्स पुव्विल्लतप्पाओग्गजोगट्ठाणद्धाणादो असंखेज्जगुणस्म चरिमजोगट्ठाणेण बंधिदृणागदविदियसमयणेरइओ च, पुणो तिरिक्खचरिमणिसेयम्मि जत्तिया सयलपक्खेवा अत्थि तत्तियमेतजोगट्ठाणाणं चरिमजोगट्ठाणेण बंधिदूणागदपढमसमयणेरइओ च, तिरिक्ख-णिरयाउअं च जहणजोग-जहण्णबंधगद्धाहि बंधिदूणागदचरिमसमयतिरिक्खो च, सरिसा । पुणो चरिमसमयतिरिक्खदव्वं घेत्तूण परमाणुत्तरादिकमेण वड्ढावेदव्वं जाव एगविगलपक्खेवो वड्डिदो ति । एत्थ विगलपक्खवभागहारो सादिरेयपुवकोडि त्ति घेत्तव्यो । पुणो एत्तियं वड्विदूण द्विदो च, अण्णेगो पक्खेवुत्तरजोगेण तिरिक्खाउअमेगसमएण बंधिय तिरिक्खचरिमसमए हिदो च, सरिसा। एदेण कमेण सादिरेयपुव्वकोडि
सकल प्रक्षेप प्राप्त होगें, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र सकल प्रक्षेप तिर्थच की अन्तिम गोपुच्छामें होते हैं।
अब योगस्थानाध्वानकी गवेषणा करते हैं। वह इस प्रकार है- एक कम डेढ़ गुणहानि मात्र सकल प्रक्षेपोंके यदि डेढ़ गुणहानि मात्र योगस्थानाध्यान प्राप्त होता है तो श्रेणिके असंख्यातवे भाग मात्र सकल प्रक्षेपों में कितना योगस्थानाध्वान प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर योगस्थानाध्वान प्राप्त होता है। फिर पूर्वोक्त तत्प्रायोग्य योगस्थानाध्वानसे असंख्यातगुणे इतने मात्र योगस्थानाध्यानक अन्तिम योगस्थानस आयुका बांधकर आया हुआ द्वितीय समयवर्ती नारकी, पुनः तिर्यंच के अन्तिम निषेकमें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र योगस्थानों सम्बन्धी अन्तिम योगस्थानसे आयुको बांधकर आया हुआ प्रथम समयवर्ती नारकी, तथा तिर्यंच या नारक आयुको जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे बांधकर आया हुआ चरम समयवर्ती तिर्यंच, ये तीनों सदृश हैं। अब चरम समयवर्ती तिर्यचके द्रव्यको ग्रहण करके एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेपके बढ़ने तक बढ़ाना चाहिये । यहां विकल प्रक्षेपका भागहार साधिक एक पूर्वकोटि ग्रहण करना चाहिये । अब इतना बढ़कर स्थित हुआ, तथा दूसरा एक जीव प्रक्षेप अधिक योगसे तिर्यंच आयुको एक समयसे बांधकर तिर्यच भवके अन्तिम समयमें स्थित हुआ, दोनों सदृश हैं । इस क्रमसे साधिक पूर्वकोटि मात्र विकल प्रक्षेपोंके बढ़नेपर
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