Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, २, ४, १९.) यणमहाहिगारे यणन्धविहाणे सामित्त
[२६९ जो एवंलक्खणविसिट्ठो सो जहण्णदव्वसामी होदि । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणियं कम्महिदि णिगोदजीवेसु अच्छिदो त्ति एदं तस्स एग विसेसणं । किमट्ठमेदं बिसेसणं कीरदे ? अण्णजीवहि परिणममाणजोगादो एदेसि जोगस्स असंखेज्जगुणहीणत्तादो। असंखेज्जगुणहीणजोगेण किमडे हिंडाविज्जदे ? संगहणटुं । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेण अणिया कम्महिदी किमई कदा ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालं एइंदिएसु संचिदकम्मपदेसाणं गुणसेडीए गालणटुं । जदि एवं तो सब्धिस्स कम्मद्विदीए कम्मपदेसाणं गुणसेडिणिज्जरा किण्ण कीरंदे ? ण, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तसम्मत्तकंडएहि परिणदसवजीवस्स णियमेण णिव्वाणगमणमुक्लंगादो । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तसम्मत्त-संजमासंजमकंडएहि परिणदजीवो णियमेण णिव्वाणमुवणमदि त्ति कुदो णव्वदे ?
जो जीव इस प्रकारके ( उपर्युक्त सूत्र में कहे गये) लक्षणसे युक्त है यह जघन्य द्रव्यका स्वामी होता है। 'पल्यापमका असंख्यातवां भाग कम कर्मस्थिति प्रमाण काल तक निगोदजीवों में रहा' यह उसका एक विशेषण है।
शंका-यह विशेषण किसलिये किया जाता है ?
समाधान-चूंकि अन्य जीवों द्वारा परिणमन किये जानेवाले योगकी अपेक्षा इनका योग असंख्यातगुणा हीन है, अतः उक्त विशेषण किया है।
शंका--असंख्यातगुणे हीन योगके साथ किसलिये घुमाया जाता है ? समाधान - संग्रह करनेके लिये असंख्यातगुणे हीन योगके साथ घुमाया है। शंका-पल्यापमके असंख्यात भागसे हीन कर्मस्थिति किसलिये की गई है ?
समाधान-पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण काक तक एकेन्द्रियों में संचित हुए कर्मप्रदेशीको गुणश्रेणि रूपसे गलाने के लिये उक्त कर्मस्थिति की गई है।
शंका - यदि ऐसा है तो सब कर्मस्थितिके कर्मप्रदेशोंकी गुणश्रेणिनिर्जरा क्यों नहीं की जाती है?
समाधान- नहीं, क्योंकि, जो जीव पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र सम्यक्त्वकाण्डकोसे परिणत होते हैं उन सबका नियमसे निर्वाण गमम पाया जाता है।
शंका-पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र सम्यक्त्वकाण्डक और संयमासंयमकाण्डकोंसे परिणत हुभा जीव नियमसे निर्वाणको प्राप्त होता है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
अ-आ-काप्रतिपु . मेत्तसमते कदे एहि ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org