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४, २, ४, ४७.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्यविहाणे सामित्त
[२५९ तेत्तियमेत्तजोगट्ठाणाणि समयाविरोहेण सव्वसमएसु ओहट्टिय ठिदो च दो वि सरिसा।
__संपधि एत्थ सगलपक्खेवबंधणविहाणं' उच्चदे । तं जहा— हेट्ठिमविरलणमेत्ताणं पगडि-विगिदिसरूवेण गलिददव्याणं जदि एगो सयलपक्खेवो लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्ताणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लद्धमेत्ता सयलपक्खेवा होति । एत्तियमेत्तट्ठाणाणि उक्कस्सबंधगद्धाए समयाविरोहेण ओदिण्णाए पुव्विलेण सरिसं होदि त्ति वत्तव्यं । पुणो पुबिल्लं मोत्तूण इमं घेत्तूण एदस्स भुंजमाणाउअम्मि एग-दोपरमाणुआदिपरिहाणिकमेण एगविगलपक्खेवमेत्तअणुक्कस्सट्टाणाणि उप्पादेदव्वाणि ।
पुणो एदेण को सरिसो होदि ति उच्चदे -- समऊणुक्कस्सबंधगद्धाए तप्पाओग्गुक्कस्सजोगेण बंधिय एगसमयं पक्खेऊणजोगेण बंधिय जलचरेसुप्पज्जिय कदलीघादं कादूण परभविआउअं पुव्वुद्दिट्ठजोगेण बंधिय जो बंधगद्धाचरिमे समए ठिदो सो सरिसो । एदेण कमेण विगलपक्खेवभागहारमेत्तविगलपक्खेवेसु परिहीणेसु रूवूणविगलपक्खेवभागहारमेत्ता
सब समयों में समयाविरोधसे उतने मात्र योगस्थानों को हटा कर स्थित है वह जीव, ये दोनों ही सदृश हैं।
___ अब यहां सकल प्रक्षेपोंके बन्धनकी विधि कहते हैं। यथा- अधस्तन विरलन मात्र प्रकृति व विकृति स्वरूपसे गलित द्रव्योंका यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो उपरिम विरलन मात्र उक्त द्रव्योंका क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार, प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर जो प्राप्त हो उतने मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं। उत्कृष्ट बन्धककालके भीतर समयाविरोधसे इतने मात्र स्थानों के उतरने पर यह स्थान पूर्वोक्त के सदृश होता है, ऐसा कहना चाहिये।
पुनः पूर्वोक्त जीवको छोड़कर और इसको ग्रहण करके इसकी भुज्यमान आयुमें एक-दो परमाणु आदिकी हानिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेप प्रमाण अनुत्कृष्ट स्थानोंको उत्पन्न कराना चाहिये।
अब इसके सदृश कौन होता है, यह बतलाते हैं - एक समय कम उत्कृष्ट बन्धककालके भीतर उसके याग्य उत्कृष्ट योगसे बांधकर और एक समय तक एक प्रक्षेप कम योग द्वारा बांधकर जलचरोंमें उत्पन्न होकर व कदलीघात करके परभयिक आयुको पूर्वोद्दिष्ट योगसे बांधकर जो बन्धककालके अन्तिम समयमें स्थित है वह जीव इसके सदृश है।
इस क्रमसे विकल प्रक्षेपक भागहार प्रमाण विकल प्रक्षेपोंके हीन होने पर एक कम विकल प्रक्षेपक भागहार प्रमाण सकल प्रक्षेपोंकी हानि होती है।
१ प्रतिषु ' विरोधाणं ' इति पाठः । २ प्रतिषु ' मेत्तपगडि-' इति पाठः । ३ अ-आ-काप्रतिषु 'विगदि इति पाठ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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