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२६. छपखंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ५, ४७. सगलपक्खेवपमाणेण कस्सामा । तं जहा - हेटिमविरलणमेत्ताणं जींद एगो सयलपक्खेवो लन्भदि तो उवरिमविरलणमेत्ताणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए लद्धमेत्ता सयलपक्खेवा होति ।
— एत्तियाणं सयलपक्खेवाणं परिहाणिणिमित्तं जोगट्ठाणपरिहाणी केत्तिया होदि त्ति उत्ते उच्चदे- रूवूणदिवड्डगुणहाणिमत्तसयलपक्खेवाणं जदि दिवड्डगुणहाणिमेत्तजोगट्ठाणपरिहाणी लम्भदि तो बिदियगोवुच्छसयलपक्खेवाणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणि. दिच्छाए ओवष्टिदाए लद्धमेत्ताणि जोगट्ठाणाणि परिहायति । पुणो एत्तियजोगट्ठाणाणि पुव्विल्लजोगट्ठाणादो परिहाइदूण पंधिय गैरइयबिदियसमए ठिदो' च पुग्विल्लजोगट्ठाणबंधगद्धाहि णेरइयतदियसमए द्विदो च दो वि सरिसा ।
पुणो पुव्विल्लं मोत्तण इमं घेत्तूण एग-दोपरमाणुआदिकमेण ऊणं करिय अणुक्कस्सट्ठाणाणि एगविगलपक्खेवमेत्ताणि उप्पादेदव्वाणि । एत्थ विगलपक्खेवभागहारो दिवङ्क
द्रव्यमेंसे अपनयन कर उसे सकल प्रक्षेपके प्रमाणसे करते हैं। यथा- अधस्तन विरलन मात्रीका यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो उपरिम विरलन मात्रोंका क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाण राशिसे फलगुणित इच्छाका अपवर्तन करनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र सकल प्रक्षेप होते हैं।
इतने मात्र सकल प्रक्षेपोंकी हानिके निमित्त योगस्थानपरिहानि कितनी होती है, ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं- एक कम डेढ़ गुणहानि प्रमाण सकळ प्रक्षेपोंकी यदि डेढ़ गुणहानि मात्र योगस्थानपरिहानि प्राप्त होती है तो द्वितीय गोपुच्छ सम्बन्धी सकल प्रक्षेपोंके निमित्त कितनी हानि प्राप्त होगी, इस प्रकार प्रमाणले फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर जो प्राप्त हो उतने मात्र योग. स्थान हीन होते हैं । पुनः इतने योगस्थान पूर्वोक्त योगस्थानमैसे हीन होकर बांधकर नारक द्वितीय समयमें स्थित हुआ जीव तथा पूर्वोक्त योगस्थान बन्धककालके द्वारा नारक तृतीय समयमें स्थित हुआ जीव, ये दोनों ही सदृश हैं।
पुनः पूर्वोक्त जीवको छोड़कर और इसको ग्रहण कर एक-दो परमाणु आदिके क्रमसे हीन करके एक विकल प्रक्षेप प्रमाण अनुत्कृष्ट स्थानोंको उत्पन्न कराना चाहिये । यहां विकल प्रक्षेपका भागहार डेढ़ गुणहानिके अर्ध भागसे कुछ अधिक है। उसमें
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१ अप्रतौ ' -सयलपक्खेवाणं' इत्यतनपदपर्यन्तोऽयं पाठस्त्रुटितोऽस्ति । २ आप्रतावतोऽने 'परि. हाणिणिमित्तं जोगट्ठाणपरिहाणी केत्तिया होदि ति उत्ते उच्चदे- रूवूणदिवगुण हाणिमेत्तजोगहाणं लन्मदि ति । इत्यधिकः पाठः । ३ अ-आ-काप्रति 'विदो' इति पावः। ४ अ-आ-काप्रति 'सरिसो' इति पाठः ।
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