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१, २, ५, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदत्वविहाणे सामित्तं समकरणविहाणं जाणिय वत्तव्वं ।
संपहि बिदियरूवे उप्पाइज्जमाणे गुणहाणिपमाणं | १२८|| गुणहाणिअद्धवग्गमूलं ८) । एदेण गुणहाणिम्हि भागे हिदे भागहारादो दुगुणमागच्छदि १६ । एदं रूवाहियमुवरि चडिदण बद्धदव्वस्स भ.गहारो दुगुणचडिदद्धाणं दुरूवाहियं दिवगुणहाणिम्हि पक्खिविय अंगुलस्स असंखेज्जदिभागे ओवट्टिदे होदि । तिसु रुवेसु उप्पाइज्जमाणेसु गुणहाणिपमाणं ४८) । गुणहाणितिभागवग्गमूलं । ४ । चत्तारिरूवाहियं इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं ६४। गुणहाणिचदुभागवग्गमूलं ४] । पंचरूवाणि इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं ८०' । पंचभागवग्गमूलं । ४ । छरूवाणि इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं ९६ । छब्भागवग्गमूलं ४ । सत्तरूवाणि इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं |११२।। सत्तमभागवग्गमूलं | ४|| अट्ठरूवाणि इच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणं | १२८ । अट्ठमभागवग्गमूलं ४ । एवं कम्महिदिबिदियगुणहाणिं चढंतस्स पढमगुणहाणिम्मि जो विधी सो एत्थ वि कायव्यो। णवरि पढमगुणहाणिम्हि दुगुणिदपक्खेवरूवेहि वग्गरासिं गुणिय संदिट्ठीए गुणहाणिअद्धाणमुप्पाइदं । एत्थ पुण पक्खेवरूवेहि चेव वग्गरासिं गुणिय गुणहाणि
....................... विधान जानकर करना चाहिये।
अब द्वितीय अंकके उत्पन्न करानेमें गुणहानिका प्रमाण १२८ और गुणहानिके अर्ध भागके वर्गमूलका प्रमाण ८ है । इसका गुणहानिमें भाग देनेपर भागहारसे दूना लब्ध आता है - १६ । एक अधिक इतना आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार दो अंकोंसे अधिक आगे गये हुए अध्वानके दुनेको डेढ़ गुणहानिमें मिलाकर अंगुलके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित करने पर जो लब्ध हो उतना होता है। तीन अंकोंके उत्पन्न कराने में गुणहानिका प्रमाण ४८ और गुणहानिके तृतीय भागके वर्गमूलका प्रमाण ४ है। चार अंकोंकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण ६४ और गु चतुर्थ भागके वर्गमूलका प्रमाण ४ है। पांच अंकोंकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण ८० और गुणहानिके पांचवें भागके वर्गमूलका प्रमाण ४ है। छह अंकोंकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण ९६ और उसके छठे भागके वर्गमूलका प्रमाण ४ है । सात अंकोंकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण ११२ और उसके सातवें भागका वर्गमूल ४ है । आठ अंकोंकी इच्छा करनेपर गुणहानिका प्रमाण १२८ और उसके आठवे भागका वर्गमूल ४ है। इसी प्रकार कर्मस्थितिकी द्वितीय गुणहानि आगे जानेवाले के प्रथम गुणहानिमें जो विधि कही गई है उसीको यहां भी कहना चाहिये। विशेष इतना है कि प्रथम गुणहानिमें दूने प्रक्षेप अंकोंसे वर्गराशिको गुणित करके संदृष्टिमें गुणहानिअध्वानको उत्पन्न कराया गया है । परन्तु यहां प्रक्षेप अंकोंसे ही वर्गराशिको गुणित करके गुणहानिअध्वानको उत्पन्न कराना चाहिये ।
१ अ-काप्रत्योः ' गुणहाणि ', ताप्रतौ 'गुणहाणि (णिमि)' इति पाठः ।
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