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२१६] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ४, ३३. ट्ठाणादो खविद-घोलमाणउक्कस्सपदेसट्ठाणमसंखेज्जगुणं होदि । एदं मोत्तूण गुणिद-घोलमाणजहण्णट्ठाणसमाणं खविद-घोलमाणहाणं घेत्तूण एग-दोपरमाणुआदिकमेण ऊणं करिय अणंतभागहाणी असंखेज्जभागहाणीहि णेदव्वं जाव खविद-घोलमाणएइंदियजहण्णदव्वे त्ति । पुणो एदेण समाणं खीणकसायचरिमसमयदव्वं घेत्तूण अणंतभागहाणि-असंखेज्जभागहाणीहि ऊणं करिय णेदव्वं जाव खविद-घोलमाणओघजहण्णदव्वे त्ति । पुणो एदेण सरिसखविदकम्मंसियदव्वं घेत्तण दोहि परिहाणीहि णेदव्वं जाव खविदकम्मंसियओघजहण्णदव्वे त्ति । खविदकम्मंसिये किमढें दो चेव हाणीओ ? ण एस दोसो, खविदगुणिदकम्मंसिएसु एगसमयपबद्धपरमाणुमेत्ताणं चेव पदेसट्ठाणाणमुवलंभादो ।
एत्थ गुणिदकम्मंसिय-गुणिदघोलमाण-खविदघोलमाण-खविदकम्मंसिए' जीवे अस्सिदूण पुणरुत्तहाणपरूवणं कस्सामो- खीणकसायजहण्णदव्वस्सुवरि परमाणुत्तर-दुपरमाणुत्तरकमेण अणंतभागवड्डीए अणंताणि अपुणरुत्तट्ठाणाणि गंतूण असंखेज्जभागवड्डी पारभदि । पुणो परमाणुत्तरकमेण असंखज्जभागवड्डीए अणतेसु ठाणेसु णिरंतरं गदेसु खविद-घोलमाणजहण्णदव्वं खविदकम्मंसियअजहण्णदव्वसमाणं दिस्सदि । तं पुणरुत्तट्ठाणं होदि । पुणो परमाणु
अनुत्कृष्ट स्थानसे क्षपितघोलमानका उत्कृष्ट प्रदेशस्थान असंख्यातगुणा है। इसे छोड़कर और गुणितघोलमानके जघन्य स्थानके सदृश क्षपितघोलमान के स्थानको ग्रहण कर एक दो परमाणु आदिके क्रमसे हीन करके अनन्तभागहानि और असंख्यात. भागहानिसे क्षपितघोलमान एकेन्द्रियके जघन्य द्रव्य तक ले जाना चाहिये।
पुनः इसके समान क्षीणकषायके अन्तिम समय सम्बन्धी द्रव्यको ग्रहण कर अनन्तभागहानि और असंख्यातभागहानिसे हीन करके क्षपितघोलमानके ओघ जघन्य द्रव्य तक ले जाना चाहिये। फिर इसके सदृश क्षपितकाशिकके जघन्य द्रव्यको ग्रहण कर दो हानियों द्वारा क्षपितकर्माशिकके ओघ जघन्य द्रव्य तक ले जाना चाहिये।
शंका-- क्षपितकर्माशिकके केवल दो ही हानियां क्यों होती हैं ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, क्षपितकर्माशिक और गुणितकर्माशिक जीवमें एक समयप्रबद्धके परमाणुओंके बराबर ही प्रदेशस्थान पाये जाते हैं।
यहां गुणितकर्माशिक, गुणितघोलमान, क्षपितघोलमान और क्षपित कर्माशिक जीवोंका आश्रय करके पुनरुक्त स्थानोंकी प्ररूपणा करते हैं - क्षीणकषाय सम्बन्धी जघन्य द्रव्यके ऊपर एक परमाणु अधिक, दो परमाणु अधिक इत्यादि क्रमसे अनन्तभागवृद्धिके अनन्त अपुरुक्त स्थान जाकर असंख्यातभावृद्धिका प्रारम्भ होता है। पुनः परमाणु अधिक क्रमसे असंख्यातभागवृद्धिके अनन्त स्थानोंके निरन्तर वीतनेपर क्षपितघोलमानका जघन्य द्रव्य क्षपितकांशिकके अजघन्य द्रव्यके समान दिखता
. मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु 'गणिदकम्मंसियगणिदघोलमाणखविदगुणिदकम्मंसिए ' इति पाठः ।
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