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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, ३३.
२१८ ] असंखेज्जभागवड्डी पारभदि । सा वि पुणरुत्ता चैव । पुणो दोसु वि असंखेज्जभागवड्डीसु गच्छमाणासु दूरं गंतूण खविदघोलमाणं असंखेज्जभागवड्डी परिहायदि । से काले संखेज्जेभागवड्डी पारमदि । एवं संखेज्जभागवड्डि-असंखेज्जभागवड्डीसु' गच्छमाणसु दूरं गंतूण गुणिदेघेालमाणअसंखेज्जभागवड्डी परिहायदि । से काले संखेज्जभागवड्डी पारभदि । एवं दोणं पि संखेज्जभागवड्डीणं गच्छमाणाणं खविदघोलमाणसंखेज्जभागवड्डी परिहायदि । से काले संखेज्जगुणवड्डी पारभदि । एवं संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डीणं गच्छमाणाणं दूरं गंतूण गुणिदघोलमाणसंखेज्जभागवड्डी परिहायदि । संखेज्जगुणवड्डी पारभदि । एवं दोणं पि संखेज्जगुणवड्डीणं गच्छमाणाणं खविदघोलमाणसं खेज्जगुणवड्डी परिहायदि । असंखेज्जगुणवड्डी पारभदि । पुणो असंखेज्जगुणवड्डि-संखेज्जगुणवड्डीणं गच्छमाणाणं दूरं गंतूण गुणिदघोलमाणसंखेज्जगुणवड्डी परिहायदि, असंखेज्जगुणवड्डी पारमदि । एवं पुणरुत्ता पुणरुत्तसरूवेण दोष्णं पि असंखेज्जगुणवड्डीणं गच्छमाणाणं दूरं गंतूण खविदघोलमाणअसंखेज्जगुणवड्डी परिहायदि । एत्तो हेडिमाणं गुणिदघोलमाणजहण्णादो उवरि
का प्रारम्भ होता है । वह भी पुनरुक्त ही है । पुनः दोनों ही असंख्यात भागवृद्धियोंके चालू रहनेपर दूर जाकर क्षपितघोलमान जीवके असंख्यात भागवृद्धिकी हानि हो जाती है । अनन्तर समयमें संख्यात भागवृद्धिका प्रारम्भ होता है। इस प्रकार संख्यात भागवृद्धि व असंख्यात भागवृद्धि के चालू रहनेपर दूर जाकर गुणितघोलमान के असंख्यात भाग वृद्धिकी हानि हो जाती है । अनन्तर समयमै संख्यात भागवृद्धिका प्रारम्भ हो जाता है । इस प्रकार दोनोंके ही संख्यात भागवृद्धियोंके चालू रहनेपर क्षपितघोलमान के संख्यातभागवृद्धिकी हानि हो जाती है । अनन्तर समय में संख्यातगुणवृद्धिका प्रारम्भ हो जाता है । इस प्रकार संख्यात भागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि के चालू रहनेपर दूर जाकर गुणित घोलमान के संख्यात भागवृद्धिकी हानि हो जाती है और संख्यातगुणवृद्धिका प्रारम्भ हो जाता है । इस प्रकार दोनों के ही संख्यातगुणवृद्धियोंके चालू रहने पर क्षपित घे।लमान के संख्यातगुणवृद्धि की हानि हो जाती है और असंख्यात गुणवृद्धिका प्रारम्भ हो जाता है । पुनः असंख्यात गुणवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि चालू रहनेपर दूर जाकर गुणित घोलमान के संख्यातगुणवृद्धिकी हानि हो जाती है और असंख्यातगुणवृद्धिका प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार पुनरुक्त व अपुनरुक्त स्वरूपसे दोनोंके ही असंख्यातगुणवृद्धियों के चालू रहनेपर दूर जाकर क्षपितघोलमान के असंख्यात गुणवृद्धिकी हानि हो जाती है । इससे नीचे के और गुणितघोलमान के जघन्य स्थान से ऊपर के प्रदेशस्थानों के क्षतिघोलमान और
१ अ-काप्रत्योः ' खविदघोलमाणे ' इति पाठः । २ प्रतिषु ' असंखेज्ज ' इति पाठः । ३ काप्रत परिहादि ' इति पाठः । ४ प्रतिषु ' असंखेज्जभागवड्ढी ' इति पाठः । ५ आप्रतौ ' दुराणिद ' इति पाठः ।
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