Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१८) छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, ३२. णिसेगपमाणेण कीरमाणे दिवड्वगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगा होति । पुणो दुचरिमगुणहाणिचरिमजिसेगे वि तप्पमाणेण कीरमाणे दोचरिमणिसेयमेत्तो होदि । पुणो एदेसु दिवड्वगुणहाणिम्मि पक्खित्तेसु दुरूवाहियदिवड्डगुणहाणिमेत्ताणि भागहारोवट्टणरूवाणि लब्भंति । एदेहि अंगु. लस्स असंखेज्जदिभागे ओवट्टिदे इच्छिदव्वभागहारो होदि | ३१५०
संपधि दुसमयाहियगुणहाणिमुवरि चडिदूण बद्धदव्वभागहारो होदि एसो ३१५० । एवं संकलणागारेण वड्डमाणगोवुच्छविसेसा केत्तियमद्धाणमुवरि चडिदे ६९ । चरिमणिसेयमेत्ता होंति त्ति उत्त गुणहाणिवम्गमूलं रूवाहियं गंतूग होति । एत्थ गुणहाणिपमाणमेदं । २५६ । एदस्स वग्गमूलं १६ । एदेण गुणहाणिम्हि भागे हिदे लद्धमेदं १६ । एत्तियमेत्तमद्धाणं रूवाहियमुवरि चडिदूण बद्धसमयपबद्धस्स भागहारोवणरूवाणि दुगुणिदचडिदद्धाणं रूवाहियं दिवड्डगुणहाणिम्हि पक्खित्तमेत्ताणि होति ।
निषेक होते हैं। पुनः द्विचरम गुणहानिके चरम निषेकको भी उसके प्रमाणसे करनेपर वह दो चरम निषेक प्रमाण होता है। फिर इनको डेढ़ गुणहानिमें मिला देनेपर दो अंक अधिक डेढ़ गुणहानि प्रमाण भागहारके अपवर्तन अंक पाये जाते हैं। इनके द्वारा अंगुलके असंख्यातवें भागको अपवर्तित करनेपर इच्छित द्रव्य (१०० +१८) का भागहार होता है - २५५° । [ अन्तिम गुणहानिका द्रव्य १००, अन्तिम निषेक ९, डेढ़ गुणहानि '९; द्विचरम गुणहानिका अन्तिम निषेक १८, १८ ९ = २; १०० + २ = ११८ दो अंक अधिक डेढ़ गुणहानि; अन्तिम गुणहानिके अंतिम निषेकका भागहार जो अंगुलका असंख्यातवां भाग है उसकी संदृष्टि ३.३० = ४०० को ११८ से अपवर्तित करनेपर १९४९ = ३६५० एक समय अधिक गुणहानिके द्रव्यका भागहार ।]
अब दो समय अधिक गुणहानि मात्र आगे जाकर वांधे गये द्रव्य (१०० + १८ +२०) का भागहार यह होता है- १५° । इस प्रकार संकलन स्वरूपसे बढ़नेवाले गोपुच्छविशेष कितना अध्वान आगे जानेपर अन्तिम निषेकके बराबर होते हैं, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि वे एक अधिक गुणहानिके वर्गमूल प्रमाण जाकर अन्तिम निषेकके बराबर होते हैं। यहां गुणहानिका प्रमाण यह है- २५६। इसका घर्गमूल यह है-१६। इसका गुणहानिमें भाग देनेपर यह लब्ध होता है--१६ । एक अधिक इतना मात्र अध्वान आगे जाकर बांधे गये समयप्रबद्ध सम्बन्धी भागहारके
क जितने स्थान आगे गये हैं उनको दुगुणा कर एक अंक मिलानेपर जो प्राप्त हो उसको डेढ़ गुणहानिमें मिला देने पर प्राप्त राशि प्रमाण होते हैं। समीकरणका
प्रतिषु · भागहारोवट्टमाण ' इति पाठः। २ काप्रती |३१५० इति पाठः । ३ प्रतिषु 'पसा 'इति प्रतिषु ' वट्टमाण ' इति पाठः।
पाठ।
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