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१, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [१८९ खेज्जा भागा च भागहारो होदूण गच्छमाणो कम्हि पदेसे एगरूवमेगरूवस्स संखेज्जा भागा च भागहारो होदि त्ति उत्ते उच्चदे-चरिमगुणहाणिअद्धाणं दुगुणेणुक्कस्ससंखेज्जेण रूपूणेण खंडिय तत्थ किंचूणदिवड्डखंडाणि उवरि चडिदूण बद्धदव्वस्स एगरूवमेगरूवस्स संखेज्जा' भागा च भागहारो होदि । तं जहा- एगसमयपबद्धमस्सिदूण पढमगुणहाणिम्हि पदिददध्वस्स चरिमणिसेगे अवणिय मूलग्गसमासेण गोवुच्छविसेसाणं समकरणे कदे रूवूणगुणहाणिअद्धेण गुणिदगुणहाणिमेत्ता गोवुच्छविसेसा होति ३२/७८ । चरिमणिसेगा पुण गुणहाणिमत्ता J२८८J८ । एदाणि दो वि दव्वाणि २ दुगुणुक्कस्ससंखेज्जेण रूवूणेण खंडिदे एगखंडदव्वं होदि ३२/ ७/८/२८८।८।। दुगुणुक्कस्संखेज्जेण रूवूणेण गुणहाणिम्मि भागे हिदे । २ २९ तत्थ एगभाग रूवूर्ण गच्छे करिय गोवुच्छविसेसादिउत्तरसंकलणमाणिय पुव्वुत्तगोवुच्छविसेसेहिंतो एत्तियमेत्तगोवुच्छविसेसे घेत्तूण दुगुणुक्कस्ससंखेज्जेण रूवूणेण खंडिदगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेगेसु पक्खित्तेसु एगखंडदव्वं जहासरूवं होदि । पुणो
होकर जाता हुआ किस प्रदेशमें एक अंक और एक अंकका संख्यात बहु भाग भागहार होता है ?
समाधान-उपर्युक्त शंकाके उत्तरमें कहते हैं कि अन्तिम गुणहानिके अध्वानको एक कम दुगुणे उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित कर उसमेंसे कुछ कम डेढ़ खण्ड आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार एक अंक और एक अंकका संख्यात बहुभाग होता है। वह इस प्रकारसे-एक समयप्रबद्ध का आश्रय करके प्रथम गुणहानिमें पड़े हुए द्रव्यके अन्तिम निषेकको कम कर मूलाग्रसमाससे (नीचेसे ऊपर तक जोड़ कर) गोपुच्छविशेषोंका समीकरण करनेपर एक कम गुणहानिके अर्ध भागसे गुणित गुणहानि प्रमाण गोपुच्छविशेष होते हैं- [ गोपुच्छविशेष ३२, गुणहानि ८, ] ३२ x ५४ ८ । परन्तु अन्तिम निषेक गुणहानिके बराबर, अर्थात् जितना गुणहानिका प्रमाण होता है, उतने होते हैं- अन्तिम निषेक २८८, गुणहान ८; २८८४८। इन दोनों ही द्रव्योंको एक कम दुगुणे उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित करनेपर उनमें से एक खण्ड प्रमाण द्रव्य होता है-३२४५४८४३६ = ६३९६, २८८.४ ८ = २३०४। एक कम दुगुणे उत्कृष्ट संख्यातका गुणहानिमें भाग देनेपर उसमेंसे एक कम एक भागको गच्छ करके गोपुच्छविशेषादि उत्तर संकलनको लाकर पूर्वोक्त गोपुच्छविशेषोंमेंसे इतने मात्र गोपुच्छविशेषोंको ग्रहण कर एक कम दुगुणे उत्कृष्ट संख्यातसे स्खण्डित गुणहानि प्रमाण अन्तिम निषेकोंके मिलानेपर यथास्वरूपसे एक खण्ड द्रव्य होता है । फिर शेष
१ प्रतिषु ' असंखेग्जा' इति पाठः। २ अप्रतो ' एगरूवूणं भाग गच्छं' इति पाठः ।
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