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१७१] छक्खंडागमे वेयणाखंड
४, २, ४, ३३. होदि | १५७५ । एदेण समयपबद्धे भागे हिदे अप्पिददव्वमागच्छदि | ७७२ । । १९३
पुणो दुसमयाहियतिण्णिगुणहाणीओ उवरि चढिय बद्धदव्वभागहारो उच्चदे । तं जहा-धुवरासिदुभागं विरलिय एगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि दो-दोचरिमणिसेगा पावेति । पुणो एत्थ एगविसेसेण अहियमिच्छिय एदिस्से विरलणाए हेट्ठा रूवाहियगुणहाणिं दुगुणं विरलिय मज्झिमविरलणेगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे एगेगविसेसो पावेदि । तमुवरिमेगेगरूवधरिदेसु दादूण समकरणे कीरमाणे परिहीणरूवाणयणविहाणं वुच्चदे। तं जहा- हेट्टिमविरलणं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो मज्झिमविरलणम्मि किं लभामो त्ति १९ १ १७५ । पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय मज्झिमविरलणाए लद्धे अवणिदे एत्तिय होदि । ३६ ।। १७५ ।। पुणो एदं रूवाहियं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो रूवूणणण्णोण्ण-_३८ । भत्थरासिसत्तमभागम्मि किं
६४-१ = ९, ९४१ 33; ९ = १,४३७, ३५१७ - 33 = १६७५ । इसका समयप्रबद्धमें भाग देने पर विवक्षित द्रव्य आता है- ६३०० १५५७५ = ७७२ ।
पुनः दो समय अधिक तीन गुणहानियां आगे जाकर बांधे गये द्रव्यका भागहार कहते हैं। वह इस प्रकार है-ध्रुवराशिके द्वितीय भागका विरलन करके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति दो दो अन्तिम निषेक प्राप्त होते हैं [७०० = १४४] । चूंकि यहां एक विशेषसे आधिककी इच्छा है, अतः इस विरलन राशिके नीचे एक अधिक गुणहानिके दूनेका विरलन करके मध्यम विरलन राशिके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देने पर एक एक विशेष प्राप्त होता है [८+ १४ २ = १८; १४४ १८ = ८] । उसको उपरिम एक एक अंकके प्रति प्राप्त राशिमें देकर समीकरण करनेपर हीन अंकोंके लानेकी विधि बतलाते हैं। वह इस प्रकार है- एक अधिक अधस्तन विरलन जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो मध्यम विरलन राशिमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार फलगुणित इच्छाको प्रमाणसे अपवर्तित करके लब्धको मध्यम विरलन राशिमेसे घटा देनेपर इतना होता है- १७५ x १ २ १९ = १७५, १७५ - १७५ - ३१५० = १७५। पुनः इससे एक अधिक जाकर यदि एक अंककी हानि पायी जाती है तो एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिके सातवें भागमें वह कितनी
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, अ-कापत्योः (१५७५), तापतौ १५७५ इति पाठः ।
२ कापतौ १६९ इति पाठः ।
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