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१५६) छक्खंडागमै वेयणाखंड
[१, २, ४, ३२. चत्तरिरूवुप्पत्तिमिच्छिज्जमाणे गुणहाणिपमाणमेदं (१२८ । एदस्स अट्ठमभागो [१६] । एदस्स वग्गमूलं | ४|| एदेण गुणहाणिमोवट्टिदे भागहारादो अहगुणमागच्छदि। एदं रूवाहियं चडिदद्धाणं । पुणो चडिदद्धाणमेत्तचरिमणिसेगसु तच्छेदूण अवणिदेसु एत्तिया चरिमणिसेगा होति |९|३३ । पुणो सेसतिकोणखेत्तं मज्झे फाडिय समकरणे कदे भागहारादो चदुग्गुणविक्खंभमट्टगुणायाम खेत्तं होदि | ४|३२|' । एत्थ विक्खंभा
यामाणं पुध पुध संवग्गं काऊण चत्तारिविसेसेसु पक्खित्तेसु चत्तारिचरिमणिसेगा होति । एदेसु चडिदद्धाणम्मि पक्खित्तेसु ओबट्टणरूवाणं पमाणं होदि | ३७।।
पंचरूवेसु उप्पाइज्जमाणेसु गुणहाणिपमाणं । १६० । दसमभागो | १६ । । एदस्स
चार अंकोंकी उत्पत्ति चाहनेपर गुणहानिका प्रमाण यह है १२८ । इसका आठवां भाग १६ है । इसका वर्गमूल ४ है। इससे गुणहानिको भाजित करनेपर भागहारसे आठगुना आता है । यह एक अधिक आगेका स्थान है। फिर जितने स्थान आगे गये हैं उतने अन्तिम निषेकोको छील कर पृथक् कर देनेपर इतने अन्तिम निषेक होते हैं ९, ३३ । फिर शेष बचे त्रिकोण क्षेत्रको बीचसे फाड़ कर समीकरण करनेपर भाग
४ हारसे चौगुने विस्तारवाला और आठगुने आयामवाला क्षेत्र होता है ।
३२.
४ ३२ फिर यहां विष्कम्भ और आयामका अलग अलग संवर्ग करके चार विशेषोंके मिलानेपर चार अन्तिम विषेक होते हैं। इन्हें जितने स्थान आगे गये हैं उनमें मिलानेपर अपवर्तन रूप अंकोंका प्रमाण होता है ३७ ।
विशेषार्थ- गुणहानि १२८, १२८ ८ = १६ /१६ = ४, १२८ : ४ = ३२= ४४८, ३२+ १ = ३३, (९४ ३३) + ( ३२४ १६) = ८०९, ९ से ४१ तक अंकोंका जोड़ ८२५, ८२५ - ८०९ = १६ शेष बचे गोपुच्छविशेष । ३३ + ४ = ३७ अपवर्तन अंक । यहांपर करणिगत गच्छका प्रमाण यह है-२९९ -२; इससे १ अधिक आगेका विवक्षित स्थान होता है।
पांच अंकोंको उत्पन्न कराने पर गुणहानिका प्रमाण १६० है । दसवां भाग
, प्रतिषु संदृष्टिरियं 'चचारिचरिमणिसेगा होंति ' इत्यतः पश्चादुपलभ्यते ।
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